हिन्दी साहित्य सेवा के लिए पदम् श्री,पदम भूषण,यश भारती जैसे बड़े सम्मानो से नवाजे जा चुके गोपाल दास नीरज हिन्दी फिल्मो मे दिए अपने गीतो और कवि सम्मेलनों के मंचो पर गौरव पूर्ण मौजूदगी के लिए हमेशा याद किये जाते रहेंगे।उनसे उनके गीतो,कविताओ और हिन्दी फिल्मो मे उनके योगदान को लेकर कई बार चर्चाये हुईं तो उनका यही कहना रहा कि कलमकारों और फनकारों को संस्क्रति और देश प्रेम के लिए लिखना चाहिए।वे कहते थे कि जिस देश मे मन्दिर मस्जिद रहेंगे वहां झगड़े भी होते ही रहेंगे।वे चाहते थे कि लोग इंसानियत की पूजा करे और सदकर्म को अपना धर्म माने।
उत्तर प्रदेश के गाँव पुरावली में 4 जनवरी 1925 को जन्मे हिन्दी के प्रखर कवि ,साहित्यकार, शिक्षक एवं कवि सम्मेलनों के मंचों के बेताज बादशाह एवं फिल्मी गीत लेखक गोपाल दास नीरज का मधुर स्वर अब नहीं सुनाई देगा । 19 जुलाई 2018 की शाम उन्होने अंतिम सांस ली । वें अपने समय के हिंदी साहित्य के जाने दृ माने कवियों में रहे जिनके बिना कवि सम्मेलन अधूरा माना जाता रहा।
दर्द दिया है, आसावरी, बादलों से सलाम लेता हूँ, गीत जो गाए नहीं, नीरज की पाती, नीरज दोहावली , गीत-अगीत, कारवां गुजर गया, पुष्प पारिजात के, काव्यांजलि, नीरज संचयन, नीरज के संग-कविता के सात रंग, बादर बरस गयो, मुक्तकी, दो गीत, नदी किनारे, लहर पुकारे, प्राण-गीत, फिर दीप जलेगा, तुम्हारे लिये, वंशीवट सूना है और नीरज की गीतिकाएँ जैसी कितनी पुस्तकों के रचनाकार नीरज का असली नाम गोपालदास सक्सेना था पर बाद में वें अपनी मंहनत लग्न प्रतिभा और बेजोड़ गीतों के दम पर गीतों के राजकुमार कहे गए और मात्र नीरज नाम आते ही मंचीय कवि सम्मेलनों में भारी भीड़ उमड़ने लगी । यह नीरज के नो का ही कमाल था कि उनका परिचय ही उनके गीत के मुखड़े कारवां गुजर गया कहार देखते रहे ३. से दिया जाने लगा ।
वे पहले व्यक्ति रहे जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया, पहले पद्म श्री से, उसके बाद पद्म भूषण से। यही नहीं, फिल्मों में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये उन्हें लगातार तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला।
पुष्प पारिजात के, काव्यांजलि, नीरज संचयन, नीरज के संग-कविता के सात रंग, बादर बरस गयो, मुक्तकी, दो गीत, नदी किनारे, लहर पुकारे, प्राण-गीत, फिर दीप जलेगा, तुम्हारे लिये, वंशीवट सूना है और नीरज की गीतिकाएँ आदि के साथ ही गोपाल दास नीरज ने सैंकड़ों प्रसिद्ध फिल्मों के गीतों की रचना भी की
नीरज के गीत चाहे रेडियो पर सुने या फिर उनके मुख से किसी मंच से, दिल को पुर सुकून देते थे। गीतों का यह राजकुमार जीवन के हर झंझावात से गुजरा अपनी गरीबी को उन्होंने कभी किसी मंच से साझा नहीं किया। नीरज ने अपना बचपन किन मुश्किल हालातों में गुजारा था। गंगा किनारे उनका घर था और उनके घर में बेहद गरीबी थी। लोग गंगा नदी में 5 पैसे, 10 पैसे फेंकते थे, वें गोता लगाकर उन्हें निकालकर इकठ्ठा करते थे और इसी जमा पूंजी से घर का चूल्हा जलता था। एक साक्षात्कार में उन्हाने कुरेदने पर बताया था कि उन्होनें गरीबी के दिनों में सब्जी बेची , रिक्षा चलाई ट्यूषन पढ़ाए पर किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया । वे इटावा की कोर्ट में टाइपिंस्ट भी रहे तो उन्हे कविता का कभी न हटने वाला का शौक लग गया। उनका कल्पना से विवाह हुआ और बेटे सुनील के वे पिता बने। कुछ महीनों पहले सब टीवी पर रात को कवि शैलेष लोढ़ा के कार्यक्रम ‘वाह वाह क्या बात है’ में नीरज को देखा था। वे बेटे का सहारा लेकर कार्यक्रम में आए थे।
। सबसे पहले उन्होने रंग जी को एक कवि सम्मेलन में सुना और उनके मन में एक बात घर कर गई कि उनका गला तो रंग जी बेहतर है फिर क्या था वें गाने और लिखने लगे । पहले ज्योतिष में कतई यकीन न करने वाले नीरज ने जब अपने भविष्य के बारे में पढ़ा कि वें विष्व हिवख्यात होगें तो वें बहुत हंसे थे पर सच यही था 1983 में वें पहली बार विदेष में कवि सम्मेलन के सिलसिले में अमेरिका गए तो वहां अपनी शोहरत देखकर उन्हे खुद ही यकीन न हुआ क्योकि उनके फिल्मी गीतों का प्रभाव इस कदर था कि वें जहां भी जाते वहां उनके गीत उनसे पहले पहुंच जाते थे ।तभी तो गीतो और कविताओ के रूप मे नीरज इस दुनिया से अलविदा होने के बाद भी हमेशा जिंदा रहेंगे।
#डा श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट