देश को आजाद कराने के लिए यूं तो असख्ंय राष्टृभक्त वीरो ने अहम भूमिका निभाई थी। इन वीरो ने अपने प्राण न्योछावर करते हुए देश की आजादी का मार्ग प्रशस्त किया था। इन राष्टृभक्तो में युवा भी थे,महिलाए भी थी और बुजुर्ग भी थे ।जिनकी कुर्बानी आज भी भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। इन राष्टृभक्तों में एक वर्ग ऐसा भी था,जिनकी उम्र खिलौने से खेलने और स्कूल कालेज जाकर अपना भविष्य संवारने की थी परन्तु उन्होने खिलौनो से खेलने या फिर स्कूल कालेजो में जाकर अपना कैरियर बनाने के बजाए भारत माता को आजाद कराने का कंटीला माग््र्रा चुना था। आजादी के आन्दोलन में तभी तो 5 वर्ष से लेकर 17 वर्ष तक के बच्चो का भी अहम योगदान रहा। जिनमें से कईयों ने अपने प्राणों की आहूति दी थी। परन्तु दुर्भाग्य है कि आजादी के इन बाल सिपाहियों को कभी याद नहीं किया जाता है। वरना आजादी का इतिहास खंगालें तो अनेक ऐसे बहादुर बालवीर मिल जाएंगे, जिन्होंने तिरंगे पर मरमिटने और अंग्रेजों के दांत खट्टे करने का इतिहास रचा था।
ऐसे ही राष्ट्रभक्त बालवीरों में अमृतसर के 7 वर्षीय इस्माईल ने अंग्रेजो की कू्ररता की मिशाल बने जलियां वाला बाग में गोलियों की बोछार के बीच भारत माता की जयकार के नारे लगाये थे। जिसपर अंग्रेजो ने नन्हे बालक इस्माईल को भी गोलियों से भून डाला था। आजादी के तरूण शहीद नामक पुस्तक में सांगली में जन्में 12 वर्षीय सन्तु ,इसी उम्र की सीता और 13 साल के मालेर कोटला निवासी बिशन सिहं के बहादुरी किस्से दिये गए है। इन बच्चो ने अपने प्राण देकर आजादी की मशाल प्रज्जवलित की थी। चाहे डुंगरपुर की 13 वर्षीया कालीबाई हो,उडीसा के 13 वर्षीय बाजीराव ,नदूंखार के 12 वर्षीय शरिश कुमार और बिठुर की 12 वर्षीया मैना इन्होने भी खेलने कूदने की उम्र में तिरंगे के लिए अपने प्राणों की आहूति दी थी।
हरिद्वार में 17 वर्षीय जगदीश प्रसाद वत्स ने सन 1942 में ऋषिकुल आयुर्वेदिक कालेज में पढते हुए आजादी का बिगुल बजाया था। कालेज के छात्रों का नेतृत्व करते हुए 17 वर्षीय जगदीश प्रसाद वत्स ने तिंरगे झण्डे हाथ में लेकर अंग्रेज पुलिस को चुनौती देने का साहस किया था। 13 अगस्त सन 1942 की रात्रि में छात्रावास में हुई छात्रो की एक बैठक में 14 अगस्त को तिरंगे फैहराने के लिए सडको पर निकलने और भारत माता की जय,इंकलाब जिन्दाबाद के नारे लगाने के लिए, लिए गए निर्णय को अमलीजामा पहनाते हुए छात्रों का दल 14 अगस्त की सवेरे ही हरिद्वार की सडको पर निकल पडा था। पुलिस की छावनी के बीच भी जब छात्र जगदीश प्रसाद वत्स ने सुभाष धाट पर पहला तिरंगा फैहराया तो अंग्रेज पुलिस की एक गोली उनके बाजू को चीरती हुई निकल गई । धायल जगदीश ने धोती को फाडकर धाव पर बांध लिया और फिर दूसरा तिरंगा फैहराने के लिए डाकधर की तरफ दौड लगा दी। पुलिस की गोली चलने से बाकी छात्र तो तितर बितर हो गए थे ,लेकिन 17 वर्षीय जगदीश तिरंगे फैहराने की जिद पर अडिग रहा और उसने दूसरा तिरंगा डाकधर पर फैहरा दिया। वहां भी पुलिस ने गोली चलाई जो जगदीश के पैर में लगी। जगदीश ने फिर पटटी बांधी और रेलवे लाईन के रास्ते रेलवे स्टेशन पर पहुंचकर पाइप के रास्ते उपर चढकर तीसरा तिरंगा फैहरा दिया। जैसे ही जगदीश तिरंगा फैहराकर नीचे उतरा तो जी आर पी इन्सपैक्टर प्रेम शंकर श्रीवास्तव ने उन्हे धेर लिया। जगदीश ने तांव में आकर एक थप्पड इन्सपैक्टर श्रीवास्तव को रसीद कर दिया जिससे वह धरती पर गिर पडा। इन्सपैक्टर ने पडे पडे ही एक गोली जगदीश को मार दी जो उनके सीने में लगी। तीसरी गोली लगते ही जगदीश मुछ्रित हो गया जिन्हे इलाज के लिए देहरादून मिलर्टृ अस्पताल ले जाया गया। बताते है कि वहां जगदीश को एक बार होश आया था और उनसे माफी मांगने को कहा गया था परन्तु माफी न मांगने पर उन्हे कथित रूप में जहर का इंजेक्शन देकर उनकी हत्या कर दी गई।
सहारनपुर जिले के ग्राम खजूरी अकबरपुर निवासी जगदीश वत्स का शव भी पुलिस ने उनके पिता पंडित कदम सिंह शर्मा को नही दिया था। उल्टे दुस्साहसी अंग्रेजो ने जगदीश वत्स को गोली मारने वाले पुलिस इन्स्पैक्टर प्रेम शंकर श्रीवास्तव को पुलिस मैडल प्रदान किया था। लेकिन देश आजाद होने पर प्रथम प्रधान मन्त्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने जगदीश वत्स की राष्टृभक्ति व वीरता की प्रंशसा करते हुए एक विजय टृफी वत्स परिवार को दी थी। जो धरोहर के रूप में आज भी सुरक्षित है। जगदीश वत्स की स्मृति में उनके गांव खजूरी अकबरपुर में एक जूनियर हाई स्कूल, एक अस्पताल, एक सडक बने हुए है। वही हरिद्वार में भी भल्ला पार्क व ऋषिकुल आयुर्वेदिक कालेज में उनकी प्रतिमाए स्थापित है। प्रतिवर्ष उनकी याद में एक वालीबाल टूर्नामेन्ट भी कराया जाता है। हरीश रावत सरकार के समय शहीद जगदीश वत्स की जीवनी पाठ्यक्रम में शामिल करने व उनके नाम से सरकारी स्तर पर एक पुरस्कार शुरू करने की मांग की गई थी, तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपर मुख्य सचिव शिक्षा को उक्त बावत कार्यवाही के लिए आदेशित कर पत्रावली भेज भी दी थी, लेकिन नौकरशाही के चंगुल में फंसी अमर शहीद जगदीश प्रसाद वत्स की जीवनी आज तक भी पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं बन सकी। क्या मौजूदा मुख्यमंत्री इस अधूरे काम को पूरा करने की पहल कर पाएंगे, या फिर राष्ट्रहित व नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा व ज्ञान का सपना अधूरा ही रह जाएगा।
#गोपाल नारसन
परिचय: गोपाल नारसन की जन्मतिथि-२८ मई १९६४ हैl आपका निवास जनपद हरिद्वार(उत्तराखंड राज्य) स्थित गणेशपुर रुड़की के गीतांजलि विहार में हैl आपने कला व विधि में स्नातक के साथ ही पत्रकारिता की शिक्षा भी ली है,तो डिप्लोमा,विद्या वाचस्पति मानद सहित विद्यासागर मानद भी हासिल है। वकालत आपका व्यवसाय है और राज्य उपभोक्ता आयोग से जुड़े हुए हैंl लेखन के चलते आपकी हिन्दी में प्रकाशित पुस्तकें १२-नया विकास,चैक पोस्ट, मीडिया को फांसी दो,प्रवास और तिनका-तिनका संघर्ष आदि हैंl कुछ किताबें प्रकाशन की प्रक्रिया में हैंl सेवाकार्य में ख़ास तौर से उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए २५ वर्ष से उपभोक्ता जागरूकता अभियान जारी है,जिसके तहत विभिन्न शिक्षण संस्थाओं व विधिक सेवा प्राधिकरण के शिविरों में निःशुल्क रूप से उपभोक्ता कानून की जानकारी देते हैंl आपने चरित्र निर्माण शिविरों का वर्षों तक संचालन किया है तो,पत्रकारिता के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों व अंधविश्वास के विरूद्ध लेखन के साथ-साथ साक्षरता,शिक्षा व समग्र विकास का चिंतन लेखन भी जारी हैl राज्य स्तर पर मास्टर खिलाड़ी के रुप में पैदल चाल में २००३ में स्वर्ण पदक विजेता,दौड़ में कांस्य पदक तथा नेशनल मास्टर एथलीट चैम्पियनशिप सहित नेशनल स्वीमिंग चैम्पियनशिप में भी भागीदारी रही है। श्री नारसन को सम्मान के रूप में राष्ट्रीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा डॉ.आम्बेडकर नेशनल फैलोशिप,प्रेरक व्यक्तित्व सम्मान के साथ भी विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ भागलपुर(बिहार) द्वारा `भारत गौरव` सम्मान,पंचवटी हिन्दी साहित्य सेवा सम्मान और मानस श्री सम्मान आदि भी दिया गया हैl