सीमाएं…बहुत ही दूर

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kirti jayaswal
पर्वत को तू हिला सकता है;
भूतों को तू डरा सकता है;
हर दानव को हरा सकता है;
जल की बूँदें जला सकता है।
तू तो है अनजान, पता न
“जीवन कैसे है जीना”;
तीन ही सीढ़ी चढ़ा और बोला-
खत्म हो गयी सीमा।
“बिन पग के न उड़ूँ” सोचते
वायुयान फिर कैसे बनते!
“बिन पग के न चलूँ” सोचते
देख! पंगु यह कैसे चलते।
तू तो है अनजान, पता न
“जीवन कैसे है जीना”;
सीमित स्वयं तू हो गया;
न खत्म हो गयी सीमा।
अंगूर तू लेने चला
जो दूरी पर तो
बोले ‘खट्टे’;
आलस न कर;
हे मानव!
तुम हर कुछ संभव कर सकते।
#कीर्ति जायसवाल

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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