बीती बरस विरह की घड़ियाँ,
देखो आयी मिलन की बेला
नव सुन्दर मधुर मिलन की बेला …….
है दूर हुई मुख की मलिनता
दिख रहा है नव – यौवन खिलता
वीरानी में फिर लगा है मेला
देखो आयी मिलन की बेला
नव सुन्दर मधुर मिलन की बेला …….
जब होगा मिलन पुरुष-यौवन का
अधरों से अधर यूँ मिल जाएंगे
रसपान रूप का करने को
बग़ियों में भवंरे मडराएँगे
हर ओर लगेगा रस-रूप का मेला
देखो आयी मिलन की बेला
नव सुन्दर मधुर मिलन की बेला …….
लोक लाज सब मिथ्या होंगी
हर रूप प्रेम के अंक में होगा
इस झूठ-कपट की दुनिया में
दो पावन रूहों का संगम होगा
धरती अम्बर यूँ सज़ जाएंगे
जैसे हो देवों की मंगल बेला
देखो आयी मिलन की बेला
नव सुन्दर मधुर मिलन की बेला …….. .
#रिंकल शर्मापरिचय-नाम – रिंकल शर्मा
(लेखिका, निर्देशक, अभिनेत्री एवं समाज सेविका)निवास – कौशाम्बी ग़ाज़ियाबाद(उत्तरप्रदेश)शिक्षा – दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक , एम ए (हिंदी) एवं फ्रेंच भाषा में डिप्लोमाअनुभव – 2003 से 2007 तक जनसंपर्क अधिकारी ( bpl & maruti)2010 – 2013 तक स्वयं का स्कूल प्रबंधन(Kidzee )2013 से रंगमंच की दुनिया से जुड़ी । बहुत से हिंदी नाटकों में अभिनय, लेखन एवं मंचन किया । प्रसार भारती में प्रेमचंद के नाटकों की प्रस्तुति , दूरदर्शन के नाट्योत्सव में प्रस्तुति , यूट्यूब चैनल के लिए बाल कथाओ, लघु कथाओंं एवं कविताओं का लेखन । साथ ही 2014 से स्वयंसेवा संस्थान के साथ समाज सेविका के रूप में कार्यरत।