कंचन जैसी *काया* तेरी
मदमस्त नशीली आँखे तेरी
गुलाब की पंखुरी से लब हैं तेरे
फूलों सा कोमल हृदय तेरा
नाज़ुक कलि से हाथ तेरे
नागिन सी बलखाती चाल तेरी
यौवन दहकता अंगारों सा तेरा
संभल संभल पग धरना धरा पर
काँटे बिछे हैं ख़ूब राहों पर
घूम रहे वहशी दरिंदे इस धरा पर
न बचा है अब कोई राम यहाँ पर
रावण ही रावण हैं धरा पर
आज तुझे करनी रक्षा स्वयं धरा पर
तुझे बनना है दुर्गा और काली
झाँसी वाली रानी बन तुझको
करना है मुक़ाबला सबसे
रक्षा धरा की करनी है तो
*तन* से कोमलता का चोला उतार
चण्डी बन आज धरा पर तुझे उतरना ही होगा
अदिति रूसिया
वारासिवनी