शून्य में देखता हूं तो
शून्य ही नज़र आता है
आत्म स्वरूप में झांका तो
स्वयं में स्वयं नज़र आता है
अन्तःकरण में झांका तो
परमात्मा नज़र आता है
यानि जैसा हम चाहते है
वैसा ही हम देखते है
जैसा भी हम चाहते है
वैसा ही हम कर सकते है
फ़र्क सिर्फ दृष्टि का है
या दृष्टिकोण का है
फिर यह उदासी क्यों?
फिर यह निराशा क्यों?
गलती तो हमारी है,
हम ही हो गए थे लापरवाह
अनसुना कर रहे थे
बचाव के सारे संदेश
आते जाते रहे देश विदेश
चुनाव -कुंभ रोक नही पाए
शादियों में शामिल हो आए
ऐसे में कोरोना फैलना ही था
बर्बाद चमन होना ही था
लोगो को यूं मरना ही था
यह सच है मरने का दुःख है
अस्पताल में कराहने का दुःख है
असमय चले जाने का दुःख है
लेकिन दस मरे तो सौ बचे भी है
कई घरों में दीये जले भी है
जो बचे है उनका स्वागत करें
परमात्मा का धन्यवाद करे
नई सोच के साथ संकल्प करें
हम बचाव के तरीके अपनाएंगे
अब सबको मरने से बचाएंगे
फिर से नई दुनिया बनाएंगे।
#श्रीगोपाल नारसन