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महाकाल की नगरी उज्जैन में पूजा-अर्चना कर भगवान के आशीर्वाद के साथ “नया मध्यप्रदेश नयी रफ्तार, शिवराज सिंह अबकी बार’ का लक्ष्य सामने रखकर जन आशीर्वाद यात्रा को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने हरी झंडी दिखाकर रवाना कर दिया। इसके साथ ही भाजपा ने 2018 की फतह के अभियान का शंखनाद भी कर दिया। इसके एक दिन पूर्व ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की ओर से महाकाल को एक पत्र पूरे विधि-विधान, पूजा-अर्चना व मंत्रोच्चार के बीच समर्पित करते हुए यह अपेक्षा की गई कि महाकाल अंतर्यामी हैं और हकीकत क्या है वह यह देखेंं। वर्ष 2013 में शिवराज ने जुलाई माह में ही उज्जैन से जन आशीर्वाद यात्रा प्रारंभ की थी और महाकाल को पत्र लिखकर प्रदेश की जनता से आशीर्वाद मांगा था। उसी तर्ज पर कांग्रेस ने भाजपा सरकार के कुशासन से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना महाकाल से की है। भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए ही 2018 के चुनाव में जीत हासिल करना करो या मरो का प्रश्न बन गया है और इसी तर्ज पर कोई भी किसी से पीछे नहीं रहना चाहता। प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के बीच तू डाल-डाल मैं पात-पात का खेल चल रहा है। इसमें कौन किस पर भारी पड़ेगा या महाकाल का आशीर्वाद किसके साथ है, यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। कांग्रेस ने 18 जुलाई को उज्जैन के तराना से पोल खोल यात्रा प्रारंभ करने का ऐलान कर दिया है जिसमें सीधे-सीधे शिवराज सरकार की घेराबंदी करते हुए प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष जीतू पटवारी मुख्य भूमिका में नजर आयेंगे।
2018 के विधानसभा चुनाव में चुनावी मुकाबला काफी घमासान होने वाला है जिसमें साइबर योद्धाओं से लेकर हर प्रकार के संसाधनों का भाजपा और कांग्रेस दोनों ही इस्तेमाल करने में कोताही नहीं बरतेंगी। जन आशीर्वाद यात्रा के माध्यम से जहां चौथी बार सरकार बनाने की दिशा में सधे हुए कदमों से शिवराज चुनावी समर में कूद चुके हैं तो कांग्रेस भी पोल खोल अभियान के सहारे उनकी राह रोक कर अपनी सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त करने की हरसंभव कोशिश कर रही है। इस प्रकार दोनों ही पार्टियां राजपथ की तलाश में अब पूरी तरह से कमर कस चुकी हैं। कमलनाथ पार्टी को बूथ स्तर तक चुस्त-दुरुस्त करने और विभिन्न समाजों के लोगों को साधने के साथ ही भाजपा विरोधी मतों का विभाजन रोकने की रणनीति में व्यस्त हैं तो वहीं चुनाव प्रचार अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया विभिन्न स्तरों पर प्रचार अभियान को गति देने की रणनीति बनाने के साथ ही लोगों से मिलने के लिए निकल पड़े हैं। खजुराहो, रीवा और उसके बाद शहडोल में वे ऐसा कर चुके हैं और उनका यह सिलसिला निरन्तर आगे भी जारी रहेगा।
जन आशीर्वाद यात्रा शिवराज का ऐसा मास्टर स्ट्रोक है जिसका मकसद पिछले 15 सालों और खासकर पिछले एक साल में समाज के विभिन्न वर्गों एवं किसानों, दलितों के बीच जो असंतोष बढ़ते-बढ़ते बड़े पहाड़ की शक्ल ले चुका है, उस माहौल को पार्टी के पक्ष में सकारात्मक मोड़ देना है। इस यात्रा का उपयोग वे एक ऐसे ब्रह्मास्त्र के रूप में करने जा रहे हैं जिससे असंतोष के पहाड़ को पार कर भाजपा की राह पांच साल के लिए और आसान बनाई जाए। कांग्रेस ने भी इस रणनीति को भांपते हुए जन आशीर्वाद यात्रा के पीछे-पीछे पोल खोल यात्रा श्ाुरू करने का ऐलान कर दिया है जिसे हरी झंडी कमलनाथ दिखायेंगे। शिवराज भावी भविष्य की रूपरेखा और उनके नेतृत्व में जो जन कल्याणकारी और सामाजिक सरोकारों से जुड़ी योजनाओं के जरिए विकास के पथ पर प्रदेश अग्रसर हुआ है उसे अपनी विशिष्ट एवं लोगों के गले उतरने वाली शैली में प्रचारित कर जनता का दिल जीतने की हरसंभव कोशिश करेंगे। कांग्रेस ने इस यात्रा का विरोध नहीं करने का निर्णय किया है और वह कहीं भी मुख्यमंत्री की यात्रा के दौरान व्यवधान पैदा नहीं करेगी। लेकिन जहां-जहां शिवराज की सभा होगी वहां-वहां कांग्रेस पोल खोल यात्रा के तहत सभा करेगी और वह जिसे हकीकत समझती है उसे मतदाताओं को बतायेगी। शिवराज यात्राओं में सरकार की उपलब्धियां गिनायेंगे तो कांग्रेस यात्रा में नाकामियों को गिनाते हुए बढ़ते हुए भ्रष्टाचार की पोल खोलेगी। इसके साथ ही वह किसानों के मुद्दे को भी उठायेगी। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने कांग्रेस की सरकार बनने के बाद किसानों के कर्ज माफ करने का जो वायदा किया है उस संकल्प को भी दोहरायेगी।
कांग्रेस की पोल खोल यात्रा की जिम्मेदारी चारों कार्यकारी अध्यक्षों जीतू पटवारी, बाला बच्चन, रामनिवास रावत और सुरेश चौधरी को सौंपी गयी है। शिवराज जो सकारात्मक माहौल बनायेंगे उसके मुकाबले के लिए जीतू पटवारी मुख्य किरदार की भूमिका में रहेंगे, क्योंकि एक तो वे युवा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं और दूसरे उनकी भाषण देने की शैली आक्रामक है। पटवारी पोल खोल अभियान के तहत शिवराज सरकार की उपलब्धियों पर घड़ों पानी फेरने के उद्देश्य से महिला अत्याचार, ध्वस्त होती कानून व्यवस्था, किसानों की बढ़ती हुई आत्महत्याओं के मामले एवं किसानों की अन्य समस्याओं के साथ ही बेरोजगारी के मुद्दे पूरी आक्रामकता से उठाते हुए असंतोष के माहौल को कांग्रेस के पक्ष में सकारात्मक बनाने की कोशिश करेंगे। युवक कांग्रेस की पूरी टीम के साथ प्रदेश युवा कांग्रेस अध्यक्ष कुणाल चौधरी की बतौर संयोजक इस यात्रा में महत्वपूर्ण भूमिका होगी। शिवराज की सभा में हर विधानसभा के अलग-अलग मुद्दे होंगे और वहां किए गए कार्यों का भी वे उल्लेख करेंगे तो कांग्रेस के भी हर विधानसभा क्षेत्र में कुछ सुनिश्ििचत मुद्दे होंगे और पिछले 15 सालों में भाजपा के उस क्षेत्र के प्रभावशाली नेताओं के रहन-सहन में जो बदलाव आया है और अचानक सम्पन्नता आई है उसकी पोल खोलने के लिए उसने भी काफी तैयारी कर ली है। जन आशीर्वाद यात्रा इस मायने में काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है कि एक तो 2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव के पूर्व शिवराज ने महाकाल के आशीर्वाद के बाद जन आशीर्वाद यात्राएं निकाली थीं, जिसके परिणाम भाजपा के लिए काफी अच्छे व फलदायी रहे थे। शिवराज 55 दिन की इस यात्रा के दौरान 230 विधान सभा क्षेत्रों में जाएंगे और लगभग कुल मिलाकर 700 सभाएं करेंगे। भाजपा को भरोसा है कि इस बार भी उसे अच्छे परिणाम मिलेंगे, क्योंकि बतौर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और चुनाव अभियान एवं प्रबंधन समिति के अध्यक्ष के नाते केंद्रीय पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर की वह जुगलजोड़ी फिर से प्रदेश में सक्रिय हो गयी है जो भाजपा के लिए लकी और चुनाव जिताऊ रही है। देखने की बात यही होगी कि कांग्रेस इस जुगलजोड़ी का तोड़ निकालने की कैसी प्रभावशाली रणनीति बनाती है।
और यह भी
कांग्रेस यदि गुटबंदी से ऊपर उठकर जीतने योग्य मैदानी प्रत्याशियों को चिन्हित कर उन्हें टिकिट दे देती है तो वह आधी लड़ाई जीत लेगी। अपनी पिछली कमजोरियों को कांग्रेस ने चिन्हित कर लिया है और इस बार प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया में बड़ा बदलाव किया गया है। प्रत्याशी चयन के लिए गठित की गयी स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष मधुसूदन मिस्त्री दो अन्य सदस्यों के साथ दो दिन तक भोपाल में जमे रहे और उन्होंने मैदानी स्तर पर जानकारियां जुटाईं। पहले दिल्ली में बैठकें होती थीं और नेता आपस में टिकटों की बंदरबांट कर लेते थे। मिस्त्री ने साफ कर दिया है कि इस बार वे 2013 की गलतियां नहीं होने देंगे और अपने पास एक-एक टिकट का हिसाब भी रखेंगे। वे अपने साथ डायरी रखे हुए हैं जिसमें यह उल्लेख है कि किस-किस नेता ने टिकट दिलाने के लिए 2013 में क्या-क्या दावे करते हुए कुछ समाजों के बढ़े-चढ़े आंकड़े बताये थे, इस प्रकार जिन्होंने टिकट लिए थे वे बाद में भारी मतों से हार गये। 2013 के चुनाव की गलती न होने देने की बात वे इसलिए कर रहे हैं क्योंकि 2008 में कांग्रेस के 71 विधायक जीते थे जबकि 2013 में टिकटों की बंदरबांट होने के कारण यह संख्या 58 पर आकर टिक गयी थी। यही कारण है कि कांग्रेस इस बार विपरीत परिस्थितियों में जीतने वाले अपने सभी विधायकों को टिकट देने की परम्परा से हटकर डेढ़ दर्जन से अधिक मौजूदा विधायकों की टिकट काटने जा रही है, चाहे वे कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिग्विजय सिंह से जुड़े हुए ही क्यों न हों। इस बार टिकट केवल उन्हें ही दिए जायेंगे जिनकी जीतने की संभावना तीन अलग-अलग एजेंसियों द्वारा कराये गये सर्वे में सामने आयेगी।
# अरुण पटेल
परिचय : – लेखक सुबह सवेरे के प्रबंध संपादक हैं।
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