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शुचि जीवन निर्मल मन हो,
दूर दुमति हो सद्सम्मति हो,
जीवन भाषित मन सुवासित,
सदा दूर हो मम् अज्ञान,
कृपा करो कुछ कृपानिधान।
कभी गलत न होवे हमसे,
सदा दूर रहे हम गम से
मन मेरा पावन हो जम जम से,
सही गलत को लेवे छान,
कृपा करो कुछ कृपानिधान।
कर्तव्य कही न भूले हम,
करूणा मे हो आंखे नम,
जीवन मे मेरे हो भान,
कृपा करो कुछ कृपा निधान।
#विन्ध्यप्रकाश मिश्र` विप्र’
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