नंदु अत्यंत उदास था। एक प्रश्न बार-बार उसके मस्तिष्क में कौंद जाता था,कि उसके माथे पर लगे झूठे 'देशद्रोह एवं पागल' के कलंक का 'ठप्पा' कब उतरेगा? वह भलिभांति यह भी जानता था कि पत्नी व बालबच्चों द्वार घर त्यागना उसका 'पागलपन' सिद्ध करता है।
वह इस बात पर भी अचंभित था कि उसके द्वारा उक्त कलंकित धब्बे को मिटाने के संवैधानिक प्रयास को भी उसका 'पागलपन' ही मानते हैं।
जबकि नंदु स्वंय पढ़ चुका था कि उक्त धब्बा संविधान की धारा 21, मेंटल हेल्थ एक्ट 1987 एवं दिव्यांगजन अधिनियम 2015 के अंतर्गत दण्डनीय है और उस पर देशद्रोह का झूठा आरोप लगाने वाले और पागल कहने वाले दण्ड के पात्र हैं।
किंतु संविधान का उल्लंघन कर नंदु व उसके परिवार का जीवन नर्क बनाने वाले स्वर्ग भोग रहे हैं और देश के 70वें संविधान दिवस के सुअवसर पर आज भी नंदु खून के आँसु रो रहा था।
#इंदु भूषण बाली