केसरिया कुसुमशोभित वाटिका है यहाँ,
वसंत इठलाकर अब तुम चले कहाँ ?
वासंती चुनर ओढ़े प्रमिल ऋतु खिली यहाँ,
प्रणय के पल संग लिए अब तुम चले कहाँ ?
प्रीत की स्वरलहरियों पर गूँजा निनाद करती यहाँ,
मधुर रुनझुन गीत नुपुर के लिए अब तुम चले कहाँ ?
तनिक ठहरो वसंत,टेसू अभी सुर्ख हो रहे यहाँ,
कोमल कपोल पाती लिए अब तुम चले कहाँ ?
आल्हादित करती प्रणय मेखला निर्झर यहाँ,
उर्मिल स्पर्श स्पंदन सहेज अब तुम चले कहाँ ?
फागुन की मस्ती भरी दस्तक गुंजायमान है यहाँ,
स्नेहसिक्त कुंज तनय तजकर अब तुम चले कहाँ ?
#श्वेता जोशी
परिचय : इंदौर निवासी श्रीमती श्वेता जोशी बीएससी सहित एम.ए.(अंग्रेज़ी साहित्य) और बी.एड.भी किया है।एक वर्ष से आप स्वतंत्र लेखन (मुख्यतःकाव्य) में सक्रिय हैं। गृहिणी के साथ ही वर्तमान में रोटरी अंतरराष्ट्रीय मंडल की मासिक पत्रिका की संपादक का दायित्व भी निभा रही हैं।
अप्रितम रचना!!!!
अति सुंदर
अद्भुत