फिल्मों का समाज पर बुरा असर

0 0
Read Time6 Minute, 12 Second

baldva

फिल्में सामान्य जीवन पर जल्दी असर करती हैं सामाजिक जीवन में, वैसे फिल्मों में काम करने वालों की कार्यशैली ऐसी ही है कि,वो एक प्रकार के उच्च व्यवसायिक तरह का जीवन जीते हैं। ऐसे में इनसे अच्छे संस्कार की उम्मीद बेइमानी है,यानी न के बराबर। सरकार (अधिकारियों )और नेताओं को खुश करने का सबसे अच्छा तरीका है इनको विपरीत की वस्तुएँ परोस दो ?,और अगर ग्लेमर वाला हो तो सोने पर सुहागा,क्योंकि
इनमें संस्कार नहीं होते हैं। आजकल सभी शांतिदूत चुपचाप देश को खोखला करने में लगे हुए हैं और हममें से अधिकतर शोर मचाते हैं। भले ही ये कहानियाँ कल्पना की हैं,पर इस पर सोचना होगा। मैं किसी जाति-धर्म का विरोधी नहीं,पर ऐसा ही क्यों कि, ‘जंजीर’ में भी अमिताभ नास्तिक है और जया भगवान से नाराज होकर गाना गाती है,लेकिन शेरखान एक सच्चा इंसान है। फिल्म ‘शान’ में अमिताभ बच्चन और शशिकपूर साधू के वेश में जनता को ठगते हैं,लेकिन इसी फिल्म में ‘अब्दुल’ जैसा सच्चा इंसान है,जो सच्चाई के लिए जान दे देता है। फिल्म ‘क्रान्ति’ में माता का भजन करने वाला राजा (प्रदीप कुमार) गद्दार है,और करीम खान (शत्रुघ्न सिन्हा) एक महान देशभक्त है ,जो देश के लिए जान दे देता है। ऐसे ही ‘अमर-अकबर-एन्थोनी’ में तीन बच्चों का बाप किशनलाल एक खूनी तस्कर है,लेकिन उनके बेटों अकबर और एन्थोनी को पालने वाले मुस्लिम और इसाई महान इंसान हैं। । कुल मिलाकर आपको इनकी फिल्म में हिन्दू नास्तिक मिलेगा या धर्म का उपहास वाला कोई कारनामा दिखेगा,और इसके साथ ही आपको शेरखान पठान,डीएसपी डिसूजा, अब्दुल,पादरी,माइकल और डेविड आदि जैसे आदर्श चरित्र देखने को मिलेंगे। हो सकता है आपने पहले कभी इस पर ध्यान न दिया हो।
केवल सलीम-जावेद की ही नहीं, बल्कि कादर खान,कैफ़ी आजमी और महेश भट्ट आदि की फिल्मों का भी यही हाल है। फिल्म इंडस्ट्री पर दाउद जैसों का नियंत्रण रहा है तो इसमें अक्सर अपराधियों का महिमामंडन किया जाता है। इसके उलट पंडित को धूर्त,ठाकुर को जालिम,बनिए को सूदखोर आदि ही दिखाया जाता है।
फरहान अख्तर की फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ में ‘हवन करेंगे’ का आखिर क्या मतलब है ? मेरा मानना है कि,यह सब इत्तेफाक नहीं है,बल्कि धर्मों को लड़ाने की सोची-समझी साजिश है। 2000 तक की फिल्मों का आमजन पर इतना प्रभाव रहा कि, अच्छे-अच्छे रईस (बड़े) घराने के लोगों का दिवाला निकल गया,सिर्फ इसलिए कि, उनकी औलादों ने काम में ध्यान लगाने की बजाय बॉम्बे में जाकर…. लगाया ???
आगे आने वाली नस्ल को सुधारना या अच्छा करना है,तो खानपान और होटल वाली शादियों व फ़िल्मी नाच (डीजे)वाली संस्कृति पर ध्यान देना होगा। इसको परिवर्तित कर पुनः ढोलक,भोपा नृत्य (लोक) तथा बैठकर हाथ से खुद द्वारा शुद्ध सात्विक भोजन (देशी) व्यवस्था को शुरु करना होगा। सिर्फ सात्विक भोजन,सात्विक लोक नृत्य एवं सात्विक सत्संग ही फिल्मों से आई बुराईयों को जड़ से मिटा सकता है। साथ में ऐसी फिल्मों का बहिष्कार करना होगा,जो गलत सन्देश वाली हों,क्योंकि 100 अच्छे काम एक बुराई भारी होती है। बहिष्कार से बुराई या बुरे काम को नया इंसान करने से पहले 100 बार सोचेगा,वर्ना सब ही करने लगेंगे। अभी गुरमेहर नामक विवाद हो रहा है,तो विघ्न सन्तोषियों को तकलीफ हो रही है,जबकि देश- समाज के लिए जो गलत है,उसका विरोध जरुरी है। हम बुराई मिटाने वाले के साथ न खड़े रहे,पर बुरे इंसान का साथ कतई नहीं दें।

                                                                           #शिवरतन बल्दवा

परिचय : जैविक खेती कॊ अपनाकर सत्संग कॊ जीवन का आधार मानने वाले शिवरतन बल्दवा जैविक किसान हैं, तो पत्रकारिता भी इनका शौक है। मध्यप्रदेश की औधोगिक राजधानी इंदौर में ही रिंग रोड के करीब तीन इमली में आपका निवास है। आप कॉलेज टाइम से लेखन में अग्रणी हैं और कॉलेज में वाद-विवाद स्पर्धाओं में शामिल होकर नाट्य अभिनय में भी हाथ आजमाया है। सामाजिक स्तर पर भी नाट्य इत्यादि में सर्टिफिकेट व इनाम प्राप्त किए हैं। लेखन कार्य के साथ ही जैविक खेती में इनकी विशेष रूचि है। घूमने के विशेष शौकीन श्री बल्दवा अब तक पूरा भारत भ्रमण कर चुके हैं तो सारे धाम ज्योतिर्लिंगों के दर्शन भी कई बार कर चुके हैं।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

भाषा के लिए दिया धरना

Mon Mar 6 , 2017
अंतरराष्ट्रीय `मातृभाषा दिवस` के अवसर पर कोलकाता में जुटे सैकड़ों प्रदर्शनकारियों की यह सम्मिलित आवाज थी-‘हिन्दी बचाओ मंच’ की ओर से ऐतिहासिक कॉलेज स्क्वायर स्थित विद्यासागर पार्क के मुख्य द्वार पर। कलकत्ता विश्वविद्यालय के सामने भोजपुरी और राजस्थानी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग और मनोज तिवारी सहित कुछ […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।