अनुच्छेद 370 हटाकर ऐतिहासिक भूल को सुधारा है मोदी ने

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संसद ने पिछले बजट सत्र में एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए भारतीय राज्य जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 और 35(A) को राष्ट्रपति के द्वारा अनुच्छेद 370 (1) में वर्णित अधिकारों के तहत तत्काल प्रभाव से हटा दिया गया है । बजट सत्र में एनडीए कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35(A) , जम्मू कश्मीर राज्य पुनर्गठन विधेयक- 2019 और जम्मू कश्मीर राज्य आरक्षण विधेयक संसद के उच्च सदन या नहीं यानी राज्यसभा में 5 अगस्त को गृहमंत्री अमित शाह द्वारा पेश किया गया था। जिससे राज्यसभा ने दो तिहाई बहुमत से पारित कर लोकसभा में भेजा और वहां से भी दो तिहाई बहुमत से संकल्प प्रस्ताव और विधेयक पारित हुए।
जम्मू कश्मीर राज्य पुनर्गठन विधेयक 2019 के द्वारा जम्मू कश्मीर राज्य को दो भागों में विभाजित करते हुए जम्मू कश्मीर को विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश तथा लद्दाख को बिना विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। यह विधेयक 31 अक्टूबर 2019 सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती से से लागू होगा ,इसके साथ ही अब भारत में अब 28 राज्य और 9 केंद्र शासित प्रदेश हो जायेंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने प्रधानमंत्री नेहरू द्वारा की गई ऐतिहासिक भूल को ठीक करने का काम अनुच्छेद 370 हटा कर किया है, उन्होंने “एक देश – एक निशान ,एक विधान – एक संविधान” के सिद्धांत को लागू किया है। वैसे भी पीएम मोदी कठोर निर्णय लेने में माहिर है, इससे पहले भी उन्होंने नोटबंदी, जीएसटी और मुस्लिम महिलाओं से जुड़ा तीन तलाक जैसे ऐतिहासिक फैसले लिए है। 73वें स्वतंत्रता दिवस से ठीक पहले ऐसा ऐतिहासिक फैसला ले कर मोदी ने देश में एक नए युग की शुरुआत कर दी और वह युग हैं नमो युग।

जम्मू कश्मीर का इतिहास
कालांतर में जम्मू कश्मीर हिंदू राज्य था, यह तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक महान के साम्राज्य का हिस्सा था तभी यहां बौद्ध धर्म का आगमन हुआ । उसके बाद कुषानो के आधीन आ गया, उसके बाद 6 ठी शताब्दी में उज्जैन के महाराजा विक्रमादित्य के आधीन पुनः हिंदू धर्म की वापसी हुई। लगभग 14 वीं शताब्दी में यहां मुस्लिम शासन का आरंभ हुआ इसी समय पारस से सूफ़ी इस्लाम का आगमन हुआ, यहां ऋषि परंपरा , त्रिखा शास्त्र और सूफ़ी इस्लाम का संगम मिलता है, और यही कश्मीरियत का सार है।
मध्यकाल में 1590 ईस्वी के आसपास यहां अकबर के समय मुग़ल का शासन प्रारंभ हुआ, मुगल साम्राज्य के विघटन के बाद यहां पर पठानों का राज्य रहा लेकिन 1814 ईस्वी में पंजाब के शासक महाराजा रणजीत सिंह ने पठानों को हराकर सिख साम्राज्य की स्थापना की।
उसके बाद 1846 ईस्वी में महाराजा गुलाब सिंह कश्मीर के स्वतंत्र शासक बने , उनके बाद महाराजा हरि सिंह 1925 ईस्वी में कश्मीर की गद्दी पर बैठे, जिन्होंने 1947 तक शासन किया।

कश्मीर का भारत में विलय
1946 में कैबिनेट मिशन भारत आया, जिसने भारत को दो हिस्से एक पाकिस्तान और दूसरा हिंदुस्तान में विभाजन किया। साथ ही सभी राजे – रजवाड़ों को स्वतंत्रता दी गई वह चाहे तो भारत या पाकिस्तान में शामिल हो जाए या फिर स्वतंत्र रहें हैं। लेकिन कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने निर्णय लिया की वह ना भारत में शामिल होंगे ना ही पाकिस्तान में और दोनों के साथ तटस्थ रहने का फैसला किया ।
1947 में भारत स्वतंत्रता अधिनियम के तहत भारत से अंग्रेजों की प्रभुता की समाप्ति हुई । साथ भारत एक स्वतंत्र राज्य बना। लेकिन पाकिस्तानी सैनिकों ने अपनी बुरी नजर कश्मीर पर डालना शुरू कर दी और पाकिस्तानी सैनिक काबिलाई और घुसपैठियों के रूप में कश्मीर में आतंक फैलाने लग गए साथ ही पाकिस्तान सरकार ने कश्मीर में जरूरत की सभी आपूर्ति को काट दिया।
इससे परेशान होकर कश्मीर कर महाराजा हरिसिंह ने भारत से सहायता मांगी साथ ही उस समय के कश्मीर के लोकप्रिय राजनीतिक दल नेशनल कान्फ्रेंस के अध्यक्ष शेख अब्दुल्ला ने भी भारत से अपील करते हुए कहा कि वह पाकिस्तान से कश्मीर को बचाए।
24 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर का भारत में विलय के विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए जबकि 27 अक्टूबर 1947 को भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने विलय पत्र हस्ताक्षर किए इसके बाद भारत सरकार ने कश्मीर को पाकिस्तानी घुसपैठियों से बचाने के लिए सेना भेजी और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया।

पंडित नेहरू ने की थी ऐतिहासिक भूल

भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना और घुसपैठियों को कश्मीर से खदेड़ने में बहुत हद तक सफलता प्राप्त की और कश्मीर को आजाद करते हुए वह वर्तमान लाइन ऑफ कंट्रोल (नियंत्रण रेखा) तक पहुंच गई थी । यानी हम सफल हो रहे थे और कश्मीर को पूर्ण रूप से अपने कब्जे में लेने वाले थे कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री पंडित जवाहर लाल नेहरू 1 जनवरी 1948 को यह मामला संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ले जाने का निर्णय लिया। इसके बाद यूएनएससी ने फैसला दिया की युद्ध विराम किया जाए और पाकिस्तान अपनी सेनाएं वहां से हटाए और भारत धीरे-धीरे अपनी सेना को कम करें । तब से आज तक यह मामला संयुक्त राष्ट्र संघ में लंबित है। लेकिन सवाल यह है कि जब हमारी सेना जीत रही थी तो फिर नेहरू को संयुक्त राष्ट्र संघ में जाने की क्या जरूरत थी ? और यह बात नेहरू ने उस समय के गृहमंत्री और उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल को बिना बताए सयुंक्त राष्ट्र संघ में कश्मीर मसले को ले जाकर नेहरू ने इतिहास की सबसे बड़ी भूल की।
अनुच्छेद 370 पंडित नेहरू के मित्र जम्मू कश्मीर के प्रथम प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला के द्वारा बनाया गया था। जो जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता है, साथ ही जम्मू कश्मीर को भारत की मुख्य धारा से अलग भी करता है अनुच्छेद 370 और 35a भारतीय संविधान का मूल हिस्सा नहीं है और ना ही संविधान संशोधन द्वारा इसे जोड़ा गया था । अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान के भाग 21 का हिस्सा है जिसमें कहा गया कि यह अस्थाई , संक्रमणीय और विशेष प्रावधान वाला है।

अनुच्छेद 370 और 35(A)
अनुच्छेद 370 जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त करता है ,साथ ही रक्षा विदेश नीति, संचार को छोड़कर केंद्र सरकार के सभी कानूनों को सीमित और प्रतिबंधित करता है। अनुच्छेद 370 कश्मीर के अलग झंडे, अलग संविधान और विधानमंडल के 6 वर्ष के कार्यकाल का निर्धारण करता साथ ही राज्य में भारतीय संविधान की आत्मा कहे जाने वाले ‘मौलिक अधिकार और मूल कर्तव्य के साथ-साथ राज्य के नीति निर्देशक’ तत्व वहां पर लागू नहीं होते। भारत के संविधान का भाग छह भी जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होता था ।
क्या अनुच्छेद 370 पूरा हट गया
अनुच्छेद 370 पूरी तरह नहीं हट , उसके तीन खंड हैं जिसमें से खंड 2 और 3 को हटाया गया जबकि खंड 1 अभी भी यथावत है , और उसके अनुसार अनुच्छेद के 2 खंडों को हटाया गया है।
अनुच्छेद 370 में तीन खंड
अनुच्छेद 370(1) – में प्रावधान के मुताबिक जम्मू और कश्मीर की सरकार से सलाह करके राष्ट्रपति आदेश द्वारा संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों को जम्मू और कश्मीर पर लागू कर सकते हैं

अनुच्छेद 370(3) – में प्रावधान था कि 370 को बदलने के लिए जम्मू और कश्मीर संविधान सभा की सहमति चाहिए. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि 35A के बारे में यह तय नहीं है कि वह खुद खत्म हो जाएगा या फिर उसके लिए संशोधन करना पड़ेगा.

अनुच्छेद 35(A)
यह अनुच्छेद जम्मू कश्मीर राज्य को स्वायत्तता प्रदान करता है कि वह अपने राज्य के लिए नागरिकता को निर्धारण कर सकता है। इसके तहत जम्मू कश्मीर में कोई भी भारतीय वहां पर अचल संपत्ति नहीं खरीद सकता है। इसके द्वारा जो भी मई 1954 और इसके पूर्व कश्मीर में रह रहा था वही कश्मीर का नागरिक है यानी कश्मीर के लोगों के पास दो नागरिकता होती थी एक भारतीय नागरिकता और दूसरी जम्मू कश्मीर की नागरिकता , जबकि शेष भारत में सिर्फ भारतीय नागरिकता होती हैं, कहीं ना कहीं यह भारतीय संविधान और एक राष्ट्र के सिद्धांत का उल्लंघन था।

जम्मू कश्मीर राज्य पुनर्गठन विधेयक – 2019
जम्मू कश्मीर राज्य पुनर्गठन विधेयक- 2019 जम्मू कश्मीर राज्य को दो भागों में विभाजित करता है, 1) जम्मू कश्मीर विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश होगा जबकि 2) लद्दाख बिना विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश होगा। इसका मतलब अब जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा समाप्त हो गया है और सीधा केंद्र सरकार के आधीन और नियंत्रण में आ गया है, इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर में जो विधानसभा होगी उसका कार्यकाल 5 वर्ष का होगा और उपराज्यपाल राज्यपाल का स्थान लेगा।

अनुच्छेद 370 और 35(A) को समाप्त करने से फायदे
अनुच्छेद 370 और 35a की समाप्ति भारत के राष्ट्रपति के आदेश जो अनुच्छेद 371 एक में वर्णित है के आधार पर जम्मू कश्मीर में समय-समय पर राष्ट्रपति द्वारा पारित सभी आदेश को समाप्त करते हुए तत्काल प्रभाव से यह आदेश प्रभावी होगा। साथ ही इन अनुच्छेदों के हटने से जम्मू कश्मीर राज्य सीधा केंद्र सरकार के नियंत्रण में होगा और भारत का अभिन्न हिस्सा होगा इसके साथ भारत के राजनीतिक और भौगोलिक सीमाओं में भी परिवर्तन आयेगा। जम्मू कश्मीर राज्य पुनर्गठन विधेयक 2019, 31 अक्टूबर 2019 से प्रभावी होगा इसके बाद भारत में 29 राज्य से घटकर 28 राज्य हो जाएंगे और सात केंद्र शासित प्रदेशों से बढ़कर 9 केंद्र शासित प्रदेश। इसके साथ ही जम्मू कश्मीर का अपना कोई झंडा नहीं होगा, ना कोई संविधान होगा, ना ही विशेष राज्य का दर्जा रहेगा और विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्ष की जगह 5 वर्ष का होगा और दोहरी नागरिकता समाप्त हो जाएगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार द्वारा 370 को हटाना, एक मायने में 70 वर्ष पूर्व की गई ऐतिहासिक भूल को सुधारना है,उन्होंने एक देश एक निशान, एक संविधान एक विधान के सिद्धांत को लागू किया है और कश्मीर के लोगों को देश की मुख्यधारा से जोड़ने का कार्य किया है। उनके इस फैसले से राष्ट्रीय एकता का संचार होगा, जम्मू कश्मीर विकास के आयामों पर पहुंचेगा साथ ही उम्मीद है, कि घाटी से आतंक खत्म होगा और वहां रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। यह फैसला प्रधानमंत्री और उनकी सरकार के दृढ़ संकल्प को दर्शाता है साथ ही भारतीय जनता पार्टी से लेकर जन संघ तक के चुनावी घोषणा पत्र एक प्रमुख मुद्दा अब समाप्त हो जाता है । भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी हमेशा से अनुच्छेद 370 और 35(A) का विरोध करते रहे और जम्मू कश्मीर की जेल में रहते हुए उनकी मृत्यु हो गई ।पीएम मोदी ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी को एक श्रद्धांजलि देते हुए, सभी देशवासियों को एक ऐतिहासिक तोहफ़ा “एक भारत और अखंड भारत” के रूप में 73 वें स्वतंत्रता दिवस से पूर्व दिया।

     #देवराज एसएल दाँगी

परिचय : देवराज एसएल दाँगी पत्रकारिता से जुड़े होकर एक पत्रिका के सम्पादक हैंl आप सोनकच्छ(तहसील नरसिंहगढ़,जिला राजगढ़) के मूल निवासी हैं और अभी इंदौर(मप्र) में रहते हैंl बी.काॅम. की पढ़ाई देवी अहिल्या विश्वविद्यालय  से करते हुए समाजसेवा में भीम लगे हैंl वीर रस में रचना लेखन आपकी पसंद हैl

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