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मौन…
पीडा को जीने का साहस है
अनर्गल पर अंकुश है
मौन
स्वाभिमान की पराकाष्ठा है।
परन्तु
मौन
हलाहल भी है
जब फूटते है भीतर ही
भीतर
असंख्य ज्वालामुखी
मौन
फंदा है
जब तुम कुढते हो
दिल से दिमाग तक…।
मौन
मेरी स्वीकृति है
तुम्हेँ स्वतन्त्र रखने को
मौन
प्रतिकार है
तुम्हारी मासूम बदमाशियोँ
के विरुद्ध…
समझ सको तो
समझ लेना..आँखोँ से,
साँसोँ के चलन से..।
लेकिन
जब मेरी आँखेँ
और साँसेँ भी मौन होगी।
तब समझ लेना
मैँ तुमसे अलग हूँ
मैँ अपर से
शिकायत नही करता..
#दिलीप वसिष्ठसिरमौर(हिमाचल प्रदेश)
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