घोर अंधकार है, हर जगह विलाप है।
किरण कहीं छुपी हुई, पर भारी अंधकार है।
कोई भी खड़ा नही, न हाथ में मसाल है।
भिड रहे हैं जोर से, बस धर्म कि तलवार है।।
हिमालय सशांत है, नयन मे अश्रु धार है।
गंगा भी चीखती, ये कैसा रामराज है।।
हर घड़ी यहां खड़ी, मौत ही उपहार है।
हाथ है बंधे हुए, क्यो फौजी लाचार है।।
मां भारती है पूछती, चीखती विलाप में।
ये कैसा अंधकार है, ये कैसा अभिशाप है।।
है कोई जला दे जो, दीप एक प्रकाश का।
हो रहा घना यहां, ओर अंधकार ये।।
रो रहीं हैं जोर से, ये “सागर” कि लहरे बहुत।
बन गईं रुदाली ये, कर रहीं विलाप है।।
इक नई दिशा मिले, जो दीप कोई भला जले।
मिटा दे अंधकार ये, दिखा दे कोई राह ये।।
हर जगह प्रकाश हो, खत्म अंधकार हो।
लगे यूं ही जंग फिर, जो धर्म कि तलवार हैं।।
घोर अंधकार है, हर जगह विलाप है।
किरण कहीं छुपी हुई, पर भारी अंधकार है।।
#सतेन्द्र सेन सागर
नाम –सतेन्द्र सेन सागर
साहित्यिक उप नाम- सागर
वर्तमान पता- नई दिल्ली
शिक्षा- बीबीए(मार्केटिंग) , बीए(शास्त्री संगीत)
कार्यक्षैत्र- अर्धसैनिक बल
विधा- मुक्तक, काव्य, दोहा, छंद
सम्मान- साहित्य सागर रचनाकारअन्य उपलब्धिया- आखर नामक काव्य संग्रह मे रचनाए प्रकाशित, देश भर के विभिन्न राज्यो के अखवारो ओर ब्लॉग में रचनाओं का प्रकाशन।
लेखन का उद्देश्य – एक सोच को जन्म देना, प्रेम के प्रति नजरिया बदलाव एवं एक इंकलाबी लेखक बनने का प्रयाश