कहते हैं अच्छे -बुरे ,पाप -पुण्य के कर्म -फल के अनुसार ,
मृत्यु के बाद स्वर्ग या नरक मिलेगा. सही है ?
समाज के व्यवाहर देखने लगा तो आँखें खुली.
कर्म -फल तो ऊपर नहीं ,इसी धरती पर ही .
वह पूर्व जन कर्म फल हो या इस जन्म का पता नहीं,
पहली श्रेणी का स्नातक प्रमाण पात्र पाकर
लौटने ही वाला था तो अचानक दुर्घटना में चल बसा ,
वह तो चल बसा , उसके माता -पिता यही तड़पने लगे.यह नरक वेदना यहीं इकलौता बेटा अल्प आयु में ,
सोचो कर्म फल की वेदना ऊपर नहीं , धरती पर;
बुढापा जितना अभिशाप ,वेदना तो नरक तुलय.
मन तो चाहता है मैं कर सकता हूँ सब कुछ ,
बेटे -बहु ,पोते -पोती से मिलजुलकर नाचने -कूदने की चाह,
पर आँखें धुंधली ,कान सुनता नहीं ,नाक खो गयी सूँघने की शक्ति .
खाना बचती नहीं ,पाखाना नियत्रित नहीं ,
सब कहते बदबू ,पर बुढापा समझती नहीं ;
शरीर में झुर्रियां पद गयी, सर तो हिलती रहती.
तेज़ चलने की चाह मन में उठती ,पर दो कदम चलना मुश्किल.
सब मिलकर खाते बूढ़े को अलग दूर.
सब यही चाहते चल बस्ते तो झंझट से झूठ.
ऐसे भी कुछ बूढ़े वृद्धाश्रम में ,वह भी दो तरह के.
गरीबों के लिए वृद्ध अनाथ आश्रम है तो
दूसरा अमीर वृद्धाश्रम. पैसे अदाकरो ,आनंद से जिओ.
एक पापियों का दूसरा पुण्यात्माओं का.
तीसरे तरह के नरक तुल्य बूढ़े भीख माँग अपने परिवार को भी संभालते.कितने लूले लंगड़े ,असाध्य रोगी, कोढ़ी ,देखा धरती में ही स्वर्ग -नरक.
#आनंदकृष्णन सेतुरमण