ये मित्र हैं….

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vyagr
ये किताब नहीं
ये मित्र हैं
हमसब की
इन्हें सहेज कर रखिए
अपना हृदय समझ कर
इक्कीसवीं सदी है
इनके इस रूप के
साकार की
फिर ये नहीं मिलेगी
पुस्तकालयों में, बैठकों में,
बच्चों के बस्तों में ,
दराजों में भी इन्हें
ढूंढ़ते रह जाओगे…
इन्हें पाने के लिए
गूगल पर सर्च करना होगा
बार-2 नेट खर्च करना होगा
जिस दिन भूल से
या जानबूझकर
बटन दब जायेगा
ये सम्पूर्ण-धन
हमारे हाथ से निकल जायेगा
ये विज्ञान और ये इंसान
देखता रह जायेगा…
इसलिए
इन्हें सहेज के रखिए
ये किताब नहीं
ये मित्र हैं
हम सब की…
#व्यग्र पाण्डे, गंगापुर सिटी (राज.)

matruadmin

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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