तोड़ो मौन आज कैलाश

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anup sinh

धवल शिखर विराट दिव्य
पर्वतमालाओं के मोती,
बसने के प्रयास में थक के जग से
जाकर जिसमें शांति है सोती,
जहां उसे आगार मिला है
करे जगत की ओर प्रयाण,
संघर्षों में होकर क्षीण
भरे तूणीरों में कुछ बाण,
पुनः प्रज्जवलित हो अग्नि समर की
बचाए जग का बुरा विनाश,
मांग रही है शांति तुम्हीं से
आज कुछ अधिक और कैलाशl 

मांग यही है जग की तुमसे
शांति बसा निज गोद मध्य में,
तोड़ो युग के मोहपाश को
प्राण भरो जग के आराध्य में,
जहां स्वरों का स्वर बिगड़ा है
दिग दिगन्त तक धूम मची है,
धरा धुरी पर घूम रही पर
रचना गति की नहीं बची है,
कण-कण में जो योग तुम्हारे
एक-एक कर उसे निकालो,
भेजो क्षितिजों तक सैनिक-सा
वहां योग का तत्व बचा लो,
यह करना होगा तुमको ही
रचो योजना करो प्रयास,
हे आदियोग पालक कैलाशl 

अट्टाहास कर रहा विश्व
प्रश्नों का देख विषम जाल,
तथ्य तर्क के वैभव समक्ष
नत है जग का बुद्धि भाल,
नियति-नियंत्रण का क्षय जारी
है श्रेष्ठ कर्म केवल प्रमाद,
विपदाओं के समाधान को
प्रयासों का है रूप विवाद,
अपने तप में लीन रहो मत
कुछ तो गति का मंत्र बताओ,
सोच सुप्त है शून्य विवेक
कुछ तो मति का यंत्र बनाओ,
स्वयं-स्वयं का विस्मरण है
हमें कराओ होने का आभास,
अहम् के तत्व योग कैलाशl 

विश्व जड़ित है जड़ता में
काल कुपित बिल्लाता है,
बंधकर भ्रम की कारा में
युग स्वयं चिल्लाता है,
मिला नहीं अब तक आमंत्रण
नवयुग प्रतीक्षा जारी है,
चलता हो जब तक चले
यह संधि की दीक्षा भारी है,
अपने अंदर आग रखी जो
उसे निकालो दो चिंगारी,
सुलग रहा है जो विस्फोट
फूटने की अब है बारी,
द्वंद रुके कब तक सहिष्णु से
भार सहे कितना इतिहास,
हे ! ज्वाला के मुख कैलाशll 

#अनूप सिंह 

परिचय : अनूप सिंह की जन्मतिथि-१८ अगस्त १९९५ हैl आप वर्तमान में दिल्ली स्थित मिहिरावली में बसे हुए हैंl कला विषय लेकर स्नातक में तृतीय वर्ष में अध्ययनरत श्री सिंह को लिखने का काफी शौक हैl आपकी दृष्टि में लेखन का उद्देश्य-राष्ट्रीय चेतना बढ़ाना हैl 

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