चीख रही है धरती आज
तड़प रहा है अंबर।
अश्रु बहाती गंगा अपनी
अस्थिर है दिगंबर (ब्रह्मांड)।
छोड़ गया है आज हमें वह
देख जिसे था सीखा जीना।
सीखा गया है आज हमें वह
शंकर बन हलाहल पीना।
सूनी संसद भरती आंहें
भारत माता पड़ी है मौन।
त्राहि त्राहि पूछ रहा जग
यह क्षति पूरी करेगा कौन?
परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैlशिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl