गीत लय

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asha gupta
तुम बनो कान्हा मनभावन,
मैं अधरों पे शोभित बाँसुरी।
तुम लय ताल सखे,
मैं राधिका गीत लय की।
बरखा की छम-छम बूँदों-सा,
छल-छल बहता हृदय सरल,
प्रकृति के इस उपवन में
खिलखिलाता पुष्प,
सुरभित पवन…।
कोयल की कुहू,
भ्रमराें का गुंजन
नाचे मयूर सतरंगी मन…।
तुम बनो कान्हा मनभावन
मैं अधरों पे शोभित बांसुरी।
तुम लय ताल सखे,
मैं राधिका गीत लय की…।
जीवन की जटिल ग्रंथियाँ,
सुलझाएं तन से मन से।
कुछ सुर रहे इस काल चक्र में
नुपूर बजे छुम छन नन…।
तुम बनो कान्हा मनभावन,
मैं अधरों पे शोभित बाँसुरी।
तुम लय ताल सखे,
मैं राधिका गीत लय की…।
चिर काल से आश है व्याकुल,
भ्रमित यहाँ मानव सकल।
हृदय द्रवित,तृष्णा प्रबल,
मानवता पैठी व्यथा
मर्म अटल…।
रागिनी स्नेह सुमधुर जो छिड़े,
मृदुल भाव जो जग जाए।
चंदन हृदय जग प्राणी का,
सत्यम शिवम् की हो अनुभूति
पल जो अभिनंदन हो जाए…!
मैं संवेदनाओं की नदिया,
संगम सागर से हो जाए।
कर्म पारिजात,मन पावन हो,
जीवन लक्ष्य जो मिल जाए…।
तुम बनो कान्हा मनभावन,
मैं अधरों पे शोभित बाँसुरी।
तुम लय ताल सखे,
मैं राधिका गीत लय की॥
#डॉ.आशा गुप्ता ‘श्रेया’
परिचय: डॉ.आशा गुप्ता का लेखन में उपनाम-श्रेया  है। 
आपकी जन्म तिथि: 24 जून तथा जन्मस्थान-अहमदनगर (महाराष्ट्र)जबकि पितृ स्थान वाशिंदा-वाराणसी(उत्तर प्रदेश ) है। वर्तमान में आपका बसेरा जमशेदपुर (झारखण्ड) में है। शिक्षा-एमबीबीएस,डीजीओ सहितडी फैमिली मेडिसिन एवं एफआईपीएस है। सम्प्रति से आप स्त्री रोग विशेषज्ञ होकर जमशेदपुर के  हॉस्पिटल में कार्यरत हैं। चिकित्सकीय पेशे द्वारा सामाजिक सेवा के साथ ही लेखनी द्वारा साहित्यिक सेवा में सक्रिय हैं। आप 
हिंदी,अंग्रेजी व भोजपुरी में काव्य,लघुकथा,स्वास्थ्य संबंधी लेख,संस्मरण लिखती हैं तो कथक नृत्य के अलावा संगीत में भी रुचि है। हिंदी,भोजपुरी और अंग्रेजी भाषा की अनुभवी डॉ.गुप्ता का काव्य संकलन-‘आशा की किरण’ और ‘आशा का आकाश’ प्रकाशित हो चुका है। ऐसे ही विभिन्न काव्य संकलनों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में भी लेख-कविताओं का लगातार प्रकाशन हुआ है। आप भारत-अमेरिका में कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध होकर पदाधिकारी भी हैं। ऐसे ही कई चिकित्सा संस्थानों की व्यावसायिक सदस्यता भी है। ब्लॉग पर भी अपने भाव व्यक्त करने वाली श्रेया को प्रथम अप्रवासी सम्मलेन(मॉरीशस)में मॉरीशस के प्रधानमंत्री द्वारा सम्मान,भाषाई सौहार्द सम्मान(बर्मिंघम),साहित्य गौरव व हिंदी गौरव सम्मान(न्यूयार्क) सहित विद्योत्मा सम्मान(अ.भा. कवियित्री सम्मेलन)तथा ‘कविरत्न’ उपाधि (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ) प्रमुख रुप से प्राप्त हैं। मॉरीशस ब्रोडकास्टिंग कोरपोरेशन द्वारा आपकी रचना का प्रसारण किया गया है। विभिन्न मंचों पर काव्य पाठ में भी आप सक्रिय रहती हैं। लेखन के उद्देश्य पर आपका मानना है कि-मातृभाषा हिंदी हृदय में वास करती है, इसलिए लोगों से जुड़ने समझने के लिए हिंदी उत्तम माध्यम है। बालपन से ही प्रसिद्ध कवि-कवियित्रियों- साहित्यकारों को देखने-सुनने का सौभाग्य मिला तो समझा कि शब्दों में बहुत ही शक्ति होती है। अपनी भावनाओं व सोच को शब्दों में पिरोकर आत्मिक सुख तो पाना है ही,पर हमारी मातृभाषा व संस्कृति से विदेशी भी आकर्षित होते हैं,इसलिए मातृभाषा की गरिमा देश-विदेश में सुगंध फैलाए,यह कामना भी है।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।