# नीरज त्यागीग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश )
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इतिहास के पन्नो में कितने ना जाने दफन हो गए।
अच्छे बुरे ना जाने कितने लोग मिट्टी की गोद मे सो गए।।
कुछ के सपने पूरे हुए , कुछ के सपने ध्वस्त हो गए।
बनते बिगड़ते रिश्तों के बीच सभी ना जाने कहाँ खो गए।।
मेरा मेरा जो करता रहा जीवन भर वो भी बच ना पाया।
अपने साथ तन को ढकने के लिए भी ना कुछ ले पाया।।
सब जानते हुए भी भला कौन मोहमाया से बच पाया है।
झूठ बोलकर ही कुछ झूठो ने अपना जीवन चलाया है।।
माना कि झूठ और सच की लड़ाई में सच दफन हो जाएगा।
पर ये तय है कि आखिर में झूठ भी मिट्टी में मिल जाएगा।।
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