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चपला चम-चम चमकी जावे,
बरखा रिमझिम बरसी जावे..
बदरा उर में आन समावे।
बदरा घोर-घोर जावे,
बदरा घोर-घोर जावे॥
पुरवैया के शीतल झोंके,
तन मोरे से लिपटे जावे..
चपल हठीली बिजुरी ताने,
मन मोरे सिमटे जावे।
बैरन चमक-चमक चपलावे,
जियरा मोरा हा! डर पावे।
बदरा घोर-घोर जावे,
बदरा घोर-घोर जावे॥
बदरा पानी पिला-पिलाकर,
सजनी धरती को मनावे।
पपीहा की पी-पी बोली तो,
बिदेसिया की याद दिलावे॥
बैरी! गरज गरज धमकावे,
मेरे भीतर बैठा जावे।
बदरा घोर-घोर जावे,
बदरा घोर-घोर जावे॥
#सुशीला जोशी
परिचय: नगरीय पब्लिक स्कूल में प्रशासनिक नौकरी करने वाली सुशीला जोशी का जन्म १९४१ में हुआ है। हिन्दी-अंग्रेजी में एमए के साथ ही आपने बीएड भी किया है। आप संगीत प्रभाकर (गायन, तबला, सहित सितार व कथक( प्रयाग संगीत समिति-इलाहाबाद) में भी निपुण हैं। लेखन में आप सभी विधाओं में बचपन से आज तक सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों का प्रकाशन सहित अप्रकाशित साहित्य में १५ पांडुलिपियां तैयार हैं। अन्य पुरस्कारों के साथ आपको उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य संस्थान द्वारा ‘अज्ञेय’ पुरस्कार दिया गया है। आकाशवाणी (दिल्ली)से ध्वन्यात्मक नाटकों में ध्वनि प्रसारण और १९६९ तथा २०१० में नाटक में अभिनय,सितार व कथक की मंच प्रस्तुति दी है। अंग्रेजी स्कूलों में शिक्षण और प्राचार्या भी रही हैं। आप मुज़फ्फरनगर में निवासी हैं|
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Thu Jul 13 , 2017
चाहे तुम जीतो जग को, मगरुर कभी मत होना। होना पड़े विमुख इतने मजबूर, कभी मत होना। निज पलकों पर भले बिठा लो, कोई चंद्रमुखी तुम। माता-पिता के चरणों से तुम, दूर कभी मत होना॥ […]