आरक्षण की मांग

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ajay jayhari
बता रहा है शहर का जन-मन
होगी इक दीवार खड़ी,
टूट गया गांधी का सपना
आरक्षण की मांग बढ़ी।
बता रहा है…………..॥
बता के छोटा सिक्का खोटा
चले न घर का खर्चा मोटा,
बुद्धि प्रतिभा और कमजोरी
आपस में दो बहिन लड़ी।
बता रहा है……………..॥
हो गया लोकतंत्र बेढंगा
बुद्धि को मारे है डंडा,
बेसुध होकर आज जमीं पर
बुद्धि है बेहोश पड़ी।
बता रहा है……….॥
बड़ा हो गया मुद्दा छोटा
आरक्षण का घूमा घोटा,
कमजोरी से पड़ा है पाला
बुद्धि है कमजोर कड़ी।
बता रहा है…………..॥
               #अजय जयहरि
परिचय : अजय जयहरि का निवास कोटा स्थित रामगंज मंडी में है। पेशे से शिक्षक श्री जयहरि की जन्मतिथि १८ अगस्त १९८५ है। स्नात्कोत्तर तक शिक्षा हासिल की है। विधा-कविता,नाटक है,साथ ही मंच पर काव्य पाठ भी करते हैं। आपकी रचनाओं में ओज,हास्य रस और शैली छायावादी की झलक है। कई पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं का प्रकाशन होता रहता है।

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One thought on “आरक्षण की मांग

  1. अतीव सुंदर और सामयिक सृजन आदरणीय।

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