” दायरे “

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kaji

येदायरे , ये फासले अब,
   क्या बांटेंगे मोहब्बत को ।
वादा किया है तुमसे अब,
     निभायेंगे हम चाहत को ।।
तसव्वुर से तेरे अब,
    इस दिल को करार आता है ।
तुमको न देखूं तो दिलबर,
     वक़्त भी ठहर जाता है ।।
जुदा कर दोगे जिस्म हमारे,
      बांट न पाओगे रूहों को ।
 पता चलेगी प्यार की ताक़त,
       दुनिया में मग़रूरों को ।।।।

#डॉ.वासीफ काजी

परिचय : इंदौर में इकबाल कालोनी में निवासरत डॉ. वासीफ पिता स्व.बदरुद्दीन काजी ने हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है,साथ ही आपकी हिंदी काव्य एवं कहानी की वर्त्तमान सिनेमा में प्रासंगिकता विषय में शोध कार्य (पी.एच.डी.) पूर्ण किया है | और अँग्रेजी साहित्य में भी एमए कियाहुआ है। आप वर्तमान में कालेज में बतौर व्याख्याता कार्यरत हैं। आप स्वतंत्र लेखन के ज़रिए निरंतर सक्रिय हैं।

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