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साल जाते हैं,तो आते भी हैं।
ग़र ये रोते हैं,तो गाते भी हैं॥
ग़म के सागर में डुबोया इनने,
किन्तु अपने हैं,तो भाते भी हैं॥
वक्त में कुछ खटाई-सी भर के,
अह़सास-ए-ज़िंदगी ये कराते भी हैं।
ले के जाते हैं ग़र ख़ुशियाँ सारीं,
तो ये सौगात नई,लाते तो हैं॥
झूमकर गा उठें,भँवरे जिन पर,
बाग-ए-ग़ुल ऐसा खिलाते तो हैं॥
बदलना रुख़ हवा का इनकी फ़ितरत,
किश्ती साहिल पे ये लाते तो हैं॥
ये ग़ुजरते हैं,ग़ुजरेंगे हमारे जैसे,
ले के जाते हैं,तो लाते भी हैं।
इनमें रहना है और रहना होगा,
साल-दर-साल ये,आते तो हैं॥
#ईश्वर दयाल गोस्वामी
परिचय: ईश्वर दयाल गोस्वामी पेशे से शिक्षक हैं। आप कवि होने के साथ ही भागवत कथा भी बांचते हैं। जन्म तिथि- ५ फरवरी १९७१ तथा जन्म स्थान- रहली है। हिन्दी सहित बुंदेली भाषा में भी २५ वर्ष से काव्य रचना जारी है तो, आपकी कविताएँ समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होती हैं। काव्य संग्रह ‘संवाद शीर्षक से’ प्रकाशनाधीन है। मध्यप्रदेश के सागर जिले की तहसील रहली के ग्राम छिरारी में बसे हुए श्री गोस्वामी की रुचि-काव्य रचना के अलावा अभिनय में भी है। आपको समकालीन कविता के लिए राज्य शिक्षा केन्द्र(भोपाल) द्वारा २०१३ में राज्य स्तरीय पुरस्कार दिया गया है। साथ ही नई दिल्ली द्वारा रमेश दत्त दुबे युवा कवि सम्मान भी प्राप्त किया है।
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