आखिरी ज़ज्बात

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annapurna
बाँधकर दिल को हमारे,
मुक्त ऐसे कर दिया।
भूल बैठे फर्क भी हम
मुक्त हैं कि कैद हैं।
हम कहें तो क्या कहें,
जो-जो उन्होंने कह दिया।
दर्द भी दिल के हमारे,
सर्द हैं खामोश हैं।
फासला सोचों का है,
छाया है,दिल के दरमियां।
कौन सच्चा,कौन झूठा,
सरपरस्त यह वक्त है।
चोट खाए हैं जो इंसां,
वे समझते दर्द  को।
दिल नहीं है पास जिनके,
ज़ख्म़ दे रूपोश हैं।
शीशे की इक दीवार के,
उस पार तुम,इस पार हम।
दूर भी तो हैं नहीं,
न पास का एहसास है।
शाम होने को चली है,
थाम लो,मेरे हाथ तुम।
तुम और मैं ‘हम’ बने,
यह आखिरी जज़्बात है।
खुशनुमां हों आखिरी पल,
आ जाएँ प्रभु हमको नज़र।
क्या गया,क्या रह गया,
न  सोचने की  बात।
                                                              #डॉ.अन्नपूर्णा श्रीवास्तव
 परिचय : डॉ.अन्नपूर्णा श्रीवास्तव लेखन में  कविता,कहानी,ग़ज़ल माता के आगमन-विसर्जन के गीत भजन  निबंध आदि लिखती हैं। आप लगभग सभी विधाओं में सृजन करती हैं। आप बिहार से हैं।

matruadmin

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