आर्थिक आधार पर हो आरक्षण तो स्वीकार करेगा देश

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arpan jain

जब-जब राजनीती अपने खोखले अभिमान और दम्भ के कारण राष्ट्र में जातिगत भेद कर करके राष्ट्र का विखंडन करने की सोचेगी, तब-तब राष्ट्र की नस्ले प्रभावित भी होगी और राष्ट्र विखंडन के नित नवीन रास्ते खोज निकलेगी।

आज़ादी के बाद जब देश के संविधान के निर्माण के दौरान आरक्षण व्यवस्था लागू की गयी थी तब यक़ीनन कुछ जातियों की हालत बद से बदतर थी, अगड़ी-पिछड़ी जाति का आलोक था,  उँची जाति के लोग निम्न जाति के लोगों को छूना भी पाप समझते थे, ऐसी हालत मे उन जातियों को मुख्य धारा से जोड़ने और उनमे उपस्थित प्रतिभा पल्लवन के लिए आरक्षण आवश्यक था, परंतु आज जब हमारे समाज में शिक्षा के स्तर के बढ़ने से सामाजिक परिपेक्ष का आधे से ज़्यादा हिस्सा इन सब फिजूल बातों से काफ़ी आगे निकल चुका तो फिर देश में जातिगत आरक्षण की राजनीति क्यों?

आज जब हिंदुस्तान की ६० प्रतिशत आबादी शिक्षित और समझदार मानी जाती है और जाति के नाम पर छुआछूत जैसे घटनाएं भी नगण्य है फिर आरक्षण का आधार जाति न हो कर आर्थिक विषमता होना चाहिए।  क्योंकि ये कटु सत्य है कि गरीबी जब जात देख कर नहीं आती तब आरक्षण जात देख क्यों?

आज आरक्षण की आवश्यकता गरीब और निचले तबके को ज्यादा है, फिर राजनैतिक पार्टियाँ  जानबूझ कर जातिगत राजनीती करके इस देश को पुन: गर्त में ले जाने की तैयारी कर रही है।

वैसे भी इस बात का कोई विरोध नहीं कर सकता कि जब बाबा भीम राव अंबेडकर जी ने भारत का भाग्य विधाता बनकर संविधान लिखा तो उन्होंने तब भी इस राष्ट्र को आरक्षण के दम पर नहीं बल्कि शिक्षा और योग्यता के बल पर ही प्रतिभा संपन्न और अखंडित राष्ट्र की परिकल्पना के साथ वैश्विक प्रगतिशील राष्ट्र निर्माण करना चाहा था। संविधान निर्माण के समय जब उँची जाति वाले पिछड़ी जाती वालो पर ज़ुल्म करते थे तो उसकी आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं था इसलिए महज १५ वर्ष के लिए आरक्षण की बात लिख कर निम्न जातियों को उच्च जाति के समकक्ष लाना चाहा था, और तब भी आधार निम्न जाति के आर्थिक असमानता के कारन लिखा था। आज इस देश मे क़ानून है, मीडिया का इतना विस्तार है, लोगो के पास अपनी बात कहने का माध्यम है फिर ये आरक्षण ज़रूरी क्यों है?

आज जब बहुत सी पिछड़ी जाति के लोग अभी भी मुख्य धारा मे शामिल होने से वंचित रह गये हैं और उनको आरक्षण की ज़रूरत है पर इतने साल आरक्षण होने के बावजूद भी कुछ एक निम्न जाति के लोग जागरूकता और सही शिक्षा के अभाव में प्रतिभा पल्लवन से वंचित रह गये है। वे भी ग़रीबी जैसी महामारी के कारण ही संभवत: वंचितों की श्रेणी में अब तक है।

जब आरक्षण के मूल में गरीबी यानि आर्थिक असमता शामिल है तो फिर आरक्षण भी आर्थिक असमान वर्ग यानि गरीब वर्ग को ही मिलना चाहिए।

आरक्षण और आरक्षण की आधारशिलाएँ आज भी जाति की व्यवस्था की बात करती है, किन्तु बात गरीबी और गरीब की संवेदनाओं और समस्याओं पर केंद्रित होना था। आज राष्ट्र में तमस की रातें जाति के जंगल में उलझ गई, होना तो राष्ट्रवाद में आज़ादी के बाद अब सूर्योदय होना था।

आरक्षण के पुन: विवेचन की कड़ी में आर्थिक आधार को तरजीह देना ही होगा, क्योंकि निम्नता जातिगत आधार पर नहीं बल्कि आर्थिक आधार पर आती है। यदि जाति से उसे तोलने गए तो असल आवश्यक तबका छूट जायेगा जिसे लाभ की सबसे ज्यादा जरुरत है।

राष्ट्र के संविधान के निर्माण के दौरान बनी हुई परिस्थितियां आज भी प्रासंगिक हो यह तो आवश्यक नहीं है, इसी लिए आरक्षण की संरचना भी संविधान के निर्माण के समय जैसी क्यों रहे। आज हर जाति धर्म के लोगो में समभाव है। ऐसी स्थिति में समजातीय व्यवस्था को लागु करने की पहली सीढ़ी आरक्षण का आधार भी आर्थिक निम्नता करना होगा।

आरक्षण का आधार आर्थिक विषमता के मायनों में होने से कई लाभ है जैसे देश की सबसे बड़ी समस्या जिसके कारण बटवारा हुआ वह भी मिट सकता है। जब राष्ट्र में एक जातिय व्यवस्था होने से लाभ जरूरतमंद को मिलेगा।

जाति की जंग में राष्ट्रीयता हार रही है, इसके मूल में देश में आ चुकी जातीय वैमनस्य की सड़ांध है। इसका समाधान भी आर्थिक आधार पर मिलने वाले आरक्षण से ही सम्भव होगा। आरक्षण की राजनीति अक्सर सियासत को गिराने-उभारने का काम करती रही है। यही कारण है कि अब तक कई बार हल की उम्मीद दिखने के बाद भी इसका रास्ता निकल नहीं निकल सका।

हाल ही के दिनों में कई तबके से मांग आई जिसके अनुसार आरक्षण जातिगत स्तर पर न होकर किसी की दशा और हैसियत के अनुसार हो। उन तमाम लोगों को सुविधा मिले जो आर्थिक और सामाजिक स्तर पर पिछड़े हैं। आर्थिक स्तर पर ही आरक्षण मिले, इस बात की हिमायती वे जातियां भी हैं जो हाल के दिनों में खुद आरक्षण की मांग कर रही हैं,जैसे पटेल, जाट मराठा आदि।

वैसे तो यह इतना आसान नहीं होगा। 37 साल पहले पूरे देश में हिंसक आंदोलन के बाद आरक्षण लेने वाले और अभी भी जातिगत जनगणना को सार्वजनिक कर रिजर्वेशन कोटे को नए सिरे से बढ़ाने की मांग बीच-बीच में उठती रही है। ऐसे में वाजिब और तार्किक रास्ता दिखने के बावजूद अभी आर्थिक आरक्षण  के हल का रास्ता नहीं दिखता है। अगर आंदोलनरत जातियों के लिए आरक्षण की मांग स्वीकार होती है या आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाता है तो 50 फीसदी तक कोटे की जो संवैधानिक सीमा है, उसके पार जाना होगा। इसमें कानूनी अड़चन खड़ी हो सकती है। तमिलनाडु सहित कुछ राज्यों में 50 फीसदी से अधिक आरक्षण दिया जा रहा है, लेकिन इसमें बहुत तकनीकी दांवपेंच है। या फिर रास्ता यह देखा जाता है कि रिजर्व क्लास में आर्थिक स्तर की सीमा तय कर दी जाए ताकि निचले पायदान तक रिजर्वेशन का लाभ पहुंच सके। लेकिन इस प्रस्ताव से रिजर्व क्लास की ही नाराजगी का खतरा है, ऐसे में प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ पा रहा है। मोदी सरकार ने हाल के दिनों में ओबीसी कमीशन बनाया। इसका प्रमुख उद्देश्य पिछड़ी जातियों में अलग-अलग कैटिगरी तय करना है। इससे यह पता चलेगा कि किन्हें रिजर्वेशन का लाभ नहीं मिल रहा है लेकिन यह भी बर्रे के छत्ते को छेड़ने वाली स्थिति मानी जा रही है। साथ ही कई संगठनों ने यह भी मांग उठाई कि रिजर्वेशन का लाभ किसी एक को कितनी बार मिले इसकी सीमा तय होनी चाहिए। इसी मांग के बीच सुप्रीम कोर्ट ने ऊंचे पदों पर रिजर्वेशन पर रोक भी लगाई। लेकिन राजनीतिक जोखिम की वजह से कोई भी सरकार इस मुद्दे पर आगे नहीं बढ़ने की हिम्मत नहीं दिखा पा रही। यूथ फॉर इक्वैलिटी के अध्यक्ष डॉ. कौशल कांत मिश्रा कहते हैं कि जाति के आधार पर रिजर्वेशन न देकर व्यक्तिगत रिजर्वेशन होना चाहिए। इसके लिए एक डिप्राइवेशन इंडेक्स (वंचित क्रम) बनाया जाए और उस हिसाब से जरूरतमंद को कोटा मिले। इसमें परिवार की आय, माता-पिता की शिक्षा, जेंडर, जन्मस्थान (गांव/शहर/ प्राइवेट हॉस्पिटल/घर/ सरकारी हॉस्पिटल), रेजिडेंस (गांव/शहर/ स्लम), प्राइमरी स्कूलिंग कहां से हुई, घर कैसा है (कच्चा/ पक्का/ कितना बड़ा), पैरंट्स का पेशा जैसे जरूरी क्राइटीरिया देखकर पॉइंट देने चाहिए। डिप्राइवेशन इंडेक्स में जो सबसे जरूरतमंद होगा, उसे रिजर्वेशन मिलना चाहिए। लेकिन जाति के नाम पर रिजर्वेशन की राजनीति करने वाले इसके लिए तैयार नहीं होंगे।

अलबत्ता राजनीती का धर्म नहीं होने से समाधान के सारे रास्ते मौन हो गए है। फिर भी यदि राष्ट्र में सवर्ण आंदोलन के माध्यम से ही यदि आरक्षण को आर्थिक आधार पर प्रदान किए जाने की आवाज़ बुलंद हुई हो निश्चित तौर पर यह आवाज़ राष्ट्रीयता का स्वर बन कर राष्ट्र में पनपी जातिगत वैमनस्यता की बीमारी का समय पर उपचार होगा।

ख़त्म हो जाएगी निजी नौकरियों में आरक्षण की मांग

आरक्षण को लेकर जारी इन तमाम सारे आंदोलन के बीच एक और बड़ा मुद्दा पिछले कुछ सालों से सामने आता रहा है,वह है जाति जनगणना। हालांकि दोनों का एक-दूसरे से सीधा संबंध नहीं है लेकिन जानकारों के अनुसार इसके सामने आने से पूरा आरक्षण आंदोलन बड़े पैमाने पर प्रभावित होगा। 2011 में जनगणना के बाद स्वतंत्र भारत में पहली बार जाति जनगणना की गई थी, जिसमें इनके सामाजिक-आर्थिक परिवेश का भी जिक्र है। लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव सहित कई राजनेता इस रिपोर्ट की खुलासे की मांग कर रहे हें। उनका कहना है कि इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद निजी नौकरियों में भी वे आरक्षण की मांग उठाएंगे। हालांकि रिपोर्ट के पेश होने के बिना ही हाल में निजी नौकरियों में आरक्षण की मांग बढ़ने लगी है। बिहार के मुख्यमंत्री  नीतीश कुमार ने इस दिशा में पहल भी कर दी और बिहार पहला ऐसा राज्य बना जहां निजी नौकरियों में आरक्षण की गुंजाइश बनी। यदि आरक्षण का आधार आर्थिक असमानता हो जायेगा तो फिर जाति जनगणना की आवश्यकता ही नहीं रह जाएगी और फिर निजी नौकरियों में भी आरक्षण आर्थिक रूप से अक्षम लोगो को मिल सकेगा।

#डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’

परिचय : डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ इन्दौर (म.प्र.) से खबर हलचल न्यूज के सम्पादक हैं, और पत्रकार होने के साथ-साथ शायर और स्तंभकार भी हैं। श्री जैन ने आंचलिक पत्रकारों पर ‘मेरे आंचलिक पत्रकार’ एवं साझा काव्य संग्रह ‘मातृभाषा एक युगमंच’ आदि पुस्तक भी लिखी है। अविचल ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज में स्त्री की पीड़ा, परिवेश का साहस और व्यवस्थाओं के खिलाफ तंज़ को बखूबी उकेरा है। इन्होंने आलेखों में ज़्यादातर पत्रकारिता का आधार आंचलिक पत्रकारिता को ही ज़्यादा लिखा है। यह मध्यप्रदेश के धार जिले की कुक्षी तहसील में पले-बढ़े और इंदौर को अपना कर्म क्षेत्र बनाया है। बेचलर ऑफ इंजीनियरिंग (कम्प्यूटर  साइंस) करने के बाद एमबीए और एम.जे.की डिग्री हासिल की एवं ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियों’ पर शोध किया है। कई पत्रकार संगठनों में राष्ट्रीय स्तर की ज़िम्मेदारियों से नवाज़े जा चुके अर्पण जैन ‘अविचल’ भारत के २१ राज्यों में अपनी टीम का संचालन कर रहे हैं। पत्रकारों के लिए बनाया गया भारत का पहला सोशल नेटवर्क और पत्रकारिता का विकीपीडिया (www.IndianReporters.com) भी जैन द्वारा ही संचालित किया जा रहा है।लेखक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान, भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं।

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One thought on “आर्थिक आधार पर हो आरक्षण तो स्वीकार करेगा देश

  1. आर्थिक आधार पर हो तो सह्रदय स्वीकार है।
    प्रणिपात गुरुवर

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।