इक शिकारा हो,किसी रेगिस्तान में
मुझे सर्दी पसन्द है,उसे गर्मी…॥
इक बूंद-सा,ढूंढ ले वो मुझे समुंदर में,
मुझे बरफ पसंद है,उसे पानी…॥
धुंए-सा पहचान ले,वो मुझे कोहरे में,
मुझे ओस पंसद है,उसे ओस का पानी…॥
ऱज़ में पड़ा मिला,पाक़ पत्थऱ-सा मैं,
मुझे प्यार पसंद है,उसे कुर्बानी …॥
शब्दकोश के अनन्त शब्दों-सा इक मैं,
मुझे कथनी पसंद है,उसे करनी …॥
तेज़ गर्मी में भी छाछ की तासीर-सा मैं,
मुझे नंदन पसंद है,उसे नन्दनी …॥
दिवाली का इक मिट्टी के दिया- सा मैं,
मुझे धूप पसंद है,उसे रोशनी…॥
रसोई के सिल पर,पुराना-सा दाग़ मैं,
मुझे चाट पसंद है,उसे चटनी…॥
इमली की खटास का इक चटकारा मैं,
मुझे जुगनू पसंद है,उसे जुगनी…॥
शिव के ध्यान से उपजा भक्ति रस-सा मैं,
मुझे गुरु पसंद है,उसे गुरुबानी…॥
स्वाति नक्षत्र की प्यास वाला चातक-सा मैं,
मुझे रोहिणी पसंद है,उसे अश्विनी…॥
अपनी ही मौत का ख़ुद-सा काफ़िला मैं,
मुझे दोस्ती पसंद है,उसे दुश्मनी…॥
ताड़ी के वृक्ष से बना काग़ज़ के ग्रंथ-सा मैं,
मुझे राम पसंद है,उसे भवानी…॥
(शब्दार्थ: रज़-धूल कण,सिल- चटनी पीसने वाला पत्थऱ
नंदन- बेटा,नन्दनी-बेटी)
परिचय : सतिंदर सिंह का जन्म २९ जुलाई १९८५ का है। एम.कॉम. की शिक्षा प्राप्त की है,और शिक्षक हैं। आप उत्तर प्रदेश के ललितपुर में रहते हैं। लिखना आपका शौक है।
satinder paji behad khubsurat rachna.. har sher laajawab.. bht umdaa