मोहब्बत का प्रतीक

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बहुत कुछ मैंने तुम्हें
आज दिलसे कह दिया।
आप इसे दिल पर
अपने मत लेना।
नादान हूँ मैं बहुत
इसलिए गलतियाँ कर देता हूँ।।

गुजर गये दिन महीने
और सालों साल।
अब बस कुछ साल महीने
या दिन ही मानो बाकी है।
जो हँसते खेलते आपकी
दुओ से निकल जायेंगे।
पर अपनी जिंदगी को
यादगार बना जायेंगे।।

मोहब्बत मोहब्बत सुनकर हम
ताजमहल तक आ पहुंचे है।
क्या इसे बड़ा भी कोई
दूसरा मोहब्बत का प्रतीक है?
जिसे मोहब्बत करने वाले
अपने को अगल बता सके।
और बुझे हुए मोहब्बत के
दियो में तेल भर सके।।

न दिल लगता है
न जी लगता है।
बस यादों का अब
दिलमें अंबार लगता है।
इसलिए दिल भरा भरा सा
आज कल हमें लगत है।
जो न कह सकता है और
न जुबा से व्या कर सकता है।।

तेरी यादों को लेकर मैं
ताजमहल पर गया था।
शायद मुझे कोई तेरा
पैग़ाम मिल जाये।
और मोहब्बत का फिरसे
मुझे एहसास हो जाये।
और तेरी याद में फिरसे
एक नया ताजमहल बन जाये।।

हमने तो चाहत से ही
एक ताज महल।
दिलमें कब से बना रखा है
देर तो अब मुमताज की है।
जो मुझे ख्याबों से निकलकर
हकीकत में मिल जाये।
और दिल के ताजमहल में
रहने को वो आ जाये।।

मोहब्बत होती है अगर
तो कुछ तो खोना पड़ता है।
कभी कभी मोहब्बत में भी
कुछ लोग गलत कर देते है।
और वो मोहब्बत के
बड़े दुश्मन बन जाते है।
और प्यार करने वालो को
एक दूसरे से जुदा कर देते है।।

ख्व़ाबों में मोहब्बत का आशियाना
बनाना अलग बात है।
हकीकत में मोहब्बत करना
उस से बड़ी बात है।
और सबसे बड़ी बात तो
मोहब्बत को दिलसे निभाना है।
तभी तो अपनी मोहब्बत को
तुम खुद जिंदा रख पाओगें।।

लूटा कर सब अपना
फिर भी जिंदा हूँ।
दस्ता मोहब्बत की
आज भी लिखता हूँ।
कैसे लोग भूल जाते है
अपने आप को।
जो मोहब्बत को
खेल समझते है।।

मोहब्बत मौसम के
अनुसार नहीं की जाती।
न मोहब्बत की कोई
योजना बनाई जाती है।
ये तो आँखों के मिलन
और दिलकी गैहराईयों में।
उतरने से किसी के साथ
अपने आप हो जाती है।।

जय जिनेंद्र देव
संजय जैन मुंबई

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