अनाथ को दो अपना हाथ

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aarti jain

अनाथ बच्चों का कोई क्यूं नहीं होता,नाथ,

उन रोते बच्चों के सिर पे रखने के लिए

क्यूं कोई नहीं होता,हाथl

हम हमेशा गर्व से बोलते हैं

सबसे बड़ा है हमारा,धर्म,
तो उन अनाथ बच्चों पे कोई धर्म, क्यूं नहीं करता,रहमl

मूर्तियों को करोड़ों के कपड़े पहनाकर हम

बढ़ाते हैं समाज की,आभा,
तो उन अनाथ बच्चों को वस्त्रहीन

देख क्यूं नहीं घटती समाज की,शोभाl

उन झूठे बाबा को जब मिलती है सजा,

तो आ जाता है हमें,रोना,
तो उन अनाथ को देख क्यूं नहीं

पसीजता हमारा,सीनाl

क्या गलती है उस अनाथ की जिसे,

तुम एक पल में कह देते हो किसी का,पाप,
ये मत भूलो कोई न कोई तुम्हारे बनाए

मजहब को मानने वाला होगा उसका भी,बापl

मानवता होती है लाज्जित जब कोई,

अनाथ करता है ठंडी रातों में खुले बदन,विलाप,

कैसे भूल जाते हैं हम अनाथ होना पाप है अगर,

तो कुंती ने भी तो मजबूरी में छोड़ा था कर्ण को,

फिर उसे कोई क्यूं नहीं कहता,श्रापl

मूर्तियों पर दूध की धारा बहाने वालों और,

मजारों पर चादर ओढ़ाने वालों कभी

उन अनाथों के भी बन जाओ नाथl

सच बोलती हूँ तुम्हारा भगवान हो या खुदा,

हो जाएगा खुश जब एक अनाथ को

तुम दोगे अपना हाथll

                                                          #आरती जैन
परिचय:  आरती जैन राजस्थान राज्य के डूंगरपुर में रहती है। आपने अंग्रेजी साहित्य में एमए और बीएड भी किया हुआ है। लेखन का उद्देश्य सामाजिक बुराई दूर करना है।

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