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सोनू के घर से कुछ ही दूरी पर सुनील नाम का ब्राम्हण लड़का रहता था। धीरे-धीरे सोनू और सुनील करीब आने लगे,किन्तु सुनील का प्यार सिर्फ दिखावा है,सोनू इस बात से विल्कुल अंजान थी।
दोनों के चर्चे जोर-शोर से मुहल्ले,पड़ोस,शहर में होने लगे। तब सोनू की माँ ने जो एक शिक्षिका थी,सोनू को बहुत समझाने की कोशिश की -`बेटा सुनील जाति का ब्राम्हण है और हम छोटी जाति केl सुनील के परिवार वाले इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं कर सकते, इसलिए तेरी मौसी ने जो लड़का बताया है वह कॉलेज में प्रोफेसर हैl मानव की शादी में उन लोगों ने तुझे देखा था,तभी से वे लोग मौसी से रिश्ते की बात करने के लिए कह रहे हैं, पर तेरा दिमाग ठीक न होने के कारण मैं कुछ जबाब नहीं दे पा रही हूँ। बेटा,मैं तुझे आखिरी बार समझा रही हूँ,कि सुनील तुझसे शादी नहीं करेगा। उसके पीछे तू अपनी जिंदगी बर्बाद न कर,हम सबके लिए यही अच्छा होगा कि तू शादी के लिए हाँ कर दे।`
माँ के समझाने का सोनू पर कोई असर नहीं हुआ। उसको तो बस एक सुनील ही सच्चा जीवनसाथी दिखाई दे रहा था।
उधर सुनील के घरवालों ने सुनील की चुपचाप शादी भी तय कर दी। `चट मंगनी-पट ब्याह` की सोचकर सबसे ये बात छुपाकर रखी। सोनू को उस दिन खबर लगी,जिस दिन सुनील की सगाई हुई।
सुनील पर इतने पहरे लगा दिए गए कि,सोनू का सुनील से मिलना नामुमकिन हो गया। तीसरे दिन सुनील की धूमधाम से उसी के दरवाजे के सामने से बारात भी निकल गई।
सोनू के दिल पर क्या बीती,यह कोई नहीं समझ सका…l सुनील के घरवालों को सोनू से क्या मतलब, उन्होंने तो एक जंग जीती थी। प्यार की इस जंग में सोनू ठगी गई। सोनू इस धोखे को सहन नहीं कर सकी और सुबह चार बजे,जब सब लोग गहरी नींद में थे,तब अपने ऊपर केरोसिन डालकर खुद को आग के हवाले कर दिया। सुनील के घर खुशियां थी,सोनू के घर मातम। सोनू अगर थोड़ी हिम्मत से काम लेती तो,उसके घर में भी खुशियां होती, और शायद वह सुनील को अच्छा सबक भी सिखा देती।
परिचय : श्रीमती सुधा कनौजे मध्यप्रदेश के दमोह में न्यू हाऊसिंग बोर्ड कॉलोनी (विवेकानंद नगर) में रहती हैंl श्रीमती कनौजे दमोह के जिला शिक्षा केन्द्र में एपीसी(जेण्डर) हैंl