Read Time2 Minute, 21 Second
दूसरों का जो आसरा होगा,
तो नहीं ख़ुद का भी भला होगा।
दूसरों को जो तू गिराएगा,
कल को तू भी यहाँ गिरा होगा।
हौंसला तब ही साथ देता है,
जब कड़ा कोई फ़ैसला होगा।
जब करोगे सनम शुरू चलना,
तब सुलभ तेरा रास्ता होगा।
मौत जब तक इधर नहीं आती,
ज़िंदगी से न तू रिहा होगा।
#विनोद सागर
परिचय: विनोद सागर लेखन क्षेत्र में निरंतर सक्रिय हैं। आपका जन्म ३ जनवरी १९८९ को जपला,पलामू में हुआ है। राजनीति शास्त्र में बी.ए.(आॅनर्स) करने के बाद आपकी साहित्य साधना और बढ़ गई। वर्तमान में आप एक साहित्यिक संस्था का दायित्व जपला, पलामू में ही निभा रहे हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं संकलनों में आपकी रचनाएँ सतत प्रकाशित होती रहती हैं। गंगा-गंगा (कविता-संग्रह), मुखौटा (कविता-संग्रह), त्रासदी (कविता-संग्रह), यादों में तुम (कविता-संग्रह) एवं निर्भया की माँ (कविता-संग्रह) आपके नाम प्रकाशित हैं। ‘मुखौटा’ का मराठी अनुवाद भी हुआ है। इधर,-तनहा सागर (ग़ज़ल-संग्रह), कुछ तुम कहो-कुछ मैं कहूँ (कविता-संग्रह), तथा मैं फिर आऊँगा (कविता-संग्रह) शीघ्र ही प्रकाशित होंगे। कुछ वार्षिक-अर्द्ध वार्षिक पत्रिकाओं का आपने सम्पादन भी किया है। २०१४ में दुष्यंत कुमार सम्मान, २०१५ में सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ सम्मान, कविश्री सम्मान, संपादन श्री सम्मान एवं झारखंड गौरव सम्मान भी २०१६ में मिला है। आपको मातृभाषा हिन्दी सहित भोजपुरी एवं मगही भाषा भी आती है। कहानी, लघुकथा, उपन्यास, गीत, ग़ज़ल, छन्द, दोहा, मुक्तक, कविता, हाइकु, क्षणिका, व्यंग्य, समीक्षा,आलेख आपके लेखन का क्षेत्र है। निवास झारखंड के जपला, पलामू में है ।
Post Views:
546
Wed Aug 30 , 2017
डगर-सी है जिंदगी बस चलते रहो, कभी अकेले कभी साथियों का साथ, पर अधिकतर अकेले जहां साँझ हुई वहां विश्राम। फिर से चल निकलना है एक नई किरण के साथ, बस चलते रहो॥ कभी अपनों से लड़ना होता कभी परायों से, पर खुद से जयादा लड़ना होता है जहां थक […]