न बोल सकता हूँ
न सुन सकता हूँ
हाँ देख सकता हूँ
परन्तु कह नहीं सकता।
कुछ करने का तो।
प्रश्न उठता ही नहीं।
क्योंकि ये भारत है।
जहाँ एकतरफ चलता है।
चाहे टेलीविजन हो या
रेडियो हो या समाचार पत्र हो।
सभी एक तरफ ही दौड़ाते है।
पर किसी की सुनते नहीं।
अब देश की व्यवस्था
और संविधान को
बदलने की उम्मीदें लगायें है।
क्योंकि लोगो का अब,
नहीं रहा इस पर विश्वास।
क्योंकि इस में सीधा
कुछ भी नहीं लिखा।
ऐसा भी वैसा भी हो सकता है।
अब निर्भर करता है
उस चतुर वकील
और चालक इंसान पर।
जो इसे अपनी चतुराई
और समझ से
कही भी मोड़ देते है।
परिणाम क्या मिलते है
वो तो बताने की जरूरत नहीं।
कितने तो इंसाफ के लिए
लड़ते लड़ते बर्बाद हो गए।
और बहुत से लोग तो
राम को प्यारे हो गए।
पर इंसाफ नहीं पाया है।
फिर भी बात करते है
अंधे गूंगे और बैहर
संविधान की।
जो नहीं दिला पता
पीड़ितों को इंसाफ।
फिर भी दुहाई देते है
अपने देश संविधान की।
और फिर भी आस लगाये
रखते है न्याय की।।
जय जिनेन्द्र देव
संजय जैन (मुम्बई)