लगी आज भादो की झड़ी

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अषाढ़ बीता सावन बीता,
आंगन रहा रीता का रीता।
कुदरत ने घुमाई ऐसी छड़ी
लगी अब भादो की झड़ी॥
जब जागो तब सवेरा है,
आंख मीची के अंधेरा है।
देर है पर नहीं  है अंधेर,
सब है ये समय का फेर॥
जल  है  तो  जीवन  है,
जल बिन सिर्फ अगन है।
चहुंओर  छाई   खुशी,
मन मयूरा आज मगन है॥
विलंबित बरखा वंदन है,
ये बूंदें अमृत रोली चंदन है।
धरती धापेगी  तो  मिटेगा,
अन्नदाता करूण क्रंदन है॥
उत्सव-सा उल्लास है आज,
प्यासे खेतों-खलिहानों में।
खग वृन्दों का विचरण देखो,
जैसे आई दिवाली विहानों में॥

                                                                       #डॉ. देवेन्द्र  जोशी

परिचय : डाॅ.देवेन्द्र जोशी गत 38 वर्षों से हिन्दी पत्रकार के साथ ही कविता, लेख,व्यंग्य और रिपोर्ताज आदि लिखने में सक्रिय हैं। कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित हुई है। लोकप्रिय हिन्दी लेखन इनका प्रिय शौक है। आप उज्जैन(मध्यप्रदेश ) में रहते हैं।

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