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कूड़े-कचरे से अपनी जिन्दगी को
ढूँढती हुई,
पग-पग पर ठोकर खाती हुई,जब उस महिला को देखती हूँ
गरीबी हटाओ के नारे पर सोचती हूँ।
उसके फटे-पुराने कपड़ों से,
जब झाँकती है उसकी जवानी
राह चलते हुए लोगों की आँखें,
लुक-छिपकर उसी को निहारती हैैं
उसके गंदे कपड़ों और देह से
न किसी को घिन आती हैै।
मक्खियों की भाँति उनकी दृष्टि,
उसके अंगों को काटती हैं
कुछ वर्षों के बाद मैंने देखा,
शिशु को गोद लिए चलती हुई
पीठ पर कूड़ों से भरे बोरे को ढोती हुई
अपनी सन्तान को डाँटती हुई,
सड़क के कोने में सूखे स्तन को
पिलाती हई खो गई थी अतीत में।
जिन्दगी के उतार-चढा़व वाले गीत में,
मैंने उसे बुलाकर कमरे में बिठाया
बासी रोटियों को खिलाया,
सिसकियों में बोल पडी़ सहसा
कुछ देर बाद रुकी उसकी
आँखों की वर्षा,
बहिन जी दो दिन से मैं भूखे पेट
व दो माह से पेट से हूँ।
मैंने पूछा-‘बच्चे का बाप’?
बोल पड़ी-उस साले के विषय में
न पूछिए आप!
वह भाग गया है मुझे छोड़कर,
मेरी जवानी की गर्दन मरोड़कर
दो-दो पहाड़ को मैं कैसे ढोऊँगी!
किस पर हंसूँ, किसके सामने रोऊँगी?
इतना कहकर वह फफक पड़ी,
टूटती नहीं थी आँसूओं की लड़ी
किसी भाँति चुप कराकर,
उससे कहा-इधर से जब गुजरो,
यहाँ आकर कुछ रोटियों से खाली
व भरे पेट भरो,बे-मौत मत मरो।
वह उल्टे पाँव चली गई,
कूडे़-कचरे में खोजने जिन्दगी नई…।
#डॉ उषा कनक पाठक
परिचय : डॉ उषा कनक पाठक की जन्म तिथि १० मार्च १९६३ और जन्म स्थान मिर्ज़ापुर है। आपका निवास उत्तर प्रदेश राज्य के शहर मिर्ज़ापुर में ही है। शिक्षा में आपने ४ विषयों में एम.ए.(हिन्दी,अंग्रेजी, संस्कृत और इतिहास) पी.एच-डी.(संस्कृत) की है। सामाजिक क्षेत्र में सेवा कार्यों के लिए आप कुछ सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़ी हुई हैं।विधा गद्य एवं पद्य है। प्रकाशन में-तुलसी तेरे आंगन की, त्रिवेणी और अंजुरीभर आदि हैं, कुछ पत्र-पत्रिकाओं में निबन्ध एवं कविता प्रकाशित हैं। सम्मान के रुप में हिन्दीसेवी सम्मान मिला है। आपके लेखन का उद्देश्य स्वयं का सुख है।
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