मेला

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नदी किनारे लगा था मेला,
सारे बच्चे मिलजुल गये घूमने |
धमा-चौकड़ी सबने खूब मचाई,
देखा जो हाथी बनाके साथी लगे चूमने ||

दही, जलेबी, पानी-पूरी, हलवा और कचौड़ी,
सब बच्चों ने चख-चखकर खाई |
फिर सर्कस जाने की पूरी करी तैयारी,
शेर, लोमड़ी, भालू, चीता और देखा बंदर भाई ||

एक जगह चटख रहे मक्का के फूले,
और थोड़ा आगे लाल, हरे, पीले गुब्बारे |
सब बच्चों ने थोड़े-थोड़े लिये खरीद,
धीरे-धीरे सांझ हो गई, शौक हुए न पूरे ||

चश्मा, चकरी, झुनझुना और बांसुरी,
खाकर आइसक्रीम लेली टोपी-बंदूक |
घूम-घामकर मेला, घर जाने की करी तैयारी,
गाँव के प्रधानजी खरीद लाये एक संदूक ||

संदूक रखा ट्रैक्टर की ट्राली में,
ऊपर चढ़ गये सारे बच्चे |
सरपट-सरपट दौड़ा ट्रैक्टर,
मेला देख हंसी-खुशी घर आये बच्चे ||

#मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

परिचय : मुकेश कुमार ऋषि वर्मा का जन्म-५ अगस्त १९९३ को हुआ हैl आपकी शिक्षा-एम.ए. हैl आपका निवास उत्तर प्रदेश के गाँव रिहावली (डाक तारौली गुर्जर-फतेहाबाद)में हैl प्रकाशन में `आजादी को खोना ना` और `संघर्ष पथ`(काव्य संग्रह) हैंl लेखन,अभिनय, पत्रकारिता तथा चित्रकारी में आपकी बहुत रूचि हैl आप सदस्य और पदाधिकारी के रूप में मीडिया सहित कई महासंघ और दल तथा साहित्य की स्थानीय अकादमी से भी जुड़े हुए हैं तो मुंबई में फिल्मस एण्ड टेलीविजन संस्थान में साझेदार भी हैंl ऐसे ही ऋषि वैदिक साहित्य पुस्तकालय का संचालन भी करते हैंl आपकी आजीविका का साधन कृषि और अन्य हैl

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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