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आसमान पर काली घटाएं
छाने वाली है,
बेवक्त जाने-अनजाने
हम को हँसाने मन को गुदगुदाने
धरती को वृक्षों से
सजाने वाली है।
आसमान पर…..॥
बह रही है नदियाँ
निर्मल धारा बनकर,
देख रहा है दुःख
बेचारा बनकर,
गूंज रहा सुख नारा बनकर
धरती पर उगी मुलायम घास को
गाय खाने वाली है,
अपने बच्चों के लिए गई थी
जो चिड़िया लेने दाना
वो आने वाली है।
आसमान पर…..॥
दुःखों का सागर
हम पर फूटता हर पल था,
कुदरत का कहर बनकर
टूटता हर पल था,
खिड़कियों से आ रही ठंडी हवा
दुःख मिटाने वाली है,
थाल में सजकर
अपार खुशियाँ
घर आने वाली हैं।
आसमान पर…..॥
अगर हमें परवाह है
प्रकृति व उस पर,
उपलब्ध साधनों की
गिर रही है बूंदें बारिश की,
आनन्द ही आनन्द
मन भाव विभोर,
शरीर से निकलकर आत्मा
स्वर्ग में जाने वाली है।
आसमान पर…..॥
सुख से छिटकी दीमक
दुःख को खाने वाली है,
किस्मत आज सुख को
आजमाने वाली है,
आपस में मिलकर
असंख्य ईंटें
मकान बनाने वाली हैं।
आसमान पर…..॥
#अजय जयहरि
परिचय : अजय जयहरि का निवास कोटा स्थित रामगंज मंडी में है। पेशे से शिक्षक श्री जयहरि की जन्मतिथि १८ अगस्त १९८५ है। स्नात्कोत्तर तक शिक्षा हासिल की है। विधा-कविता,नाटक है,साथ ही मंच पर काव्य पाठ भी करते हैं। आपकी रचनाओं में ओज,हास्य रस और शैली छायावादी की झलक है। कई पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं का प्रकाशन होता रहता है।
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Sat Aug 19 , 2017
लह़द पर आकर मेरी आंसू बहाओगी, जो दिल की बात अभी नहीं बताओगी l कल्ब का हो जाएगा तेरा हाले-ज़ार, फिर किसको अपना जख्म दिखाओगी l शादमां न हो सकोगी कभी भी तुम, लैलो-नह़ार ग़मज़दा जीवन बिताओगी l करोगी इश़्क जब इक इबादत मानकर, तो खुद पर इख्तियार कैसे कर […]