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ऐतबार नहीं करता दिल मेरा,
दुनियादारी की बातों में ।
खुली आंखों से ख़्वाब देखता,
तारे गिनता ये रातों में ।।
रस्मों रिवाज़ की दीवारें क्यों,
दुनिया ने उठायी है ।
प्रेमनगर में दिल के मेरे ,
किसने हलचल मचायी है ।।
आसमान भी सूना दिल का,
चांद नज़र नहीं आता है ।
मेरे फ़लक का चांद है तू,
बस मुझे नज़र तू आता है ।।
बंधन रस्मों के, कसमों के ;
ये झूठी दुनियादारी है ।
रिश्तों के इस झूठे जग में,
दुनिया, प्यार से हारी है ।।।।
#डॉ.वासीफ काजी
परिचय : इंदौर में इकबाल कालोनी में निवासरत डॉ. वासीफ पिता स्व.बदरुद्दीन काजी ने हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है,साथ ही आपकी हिंदी काव्य एवं कहानी की वर्त्तमान सिनेमा में प्रासंगिकता विषय में शोध कार्य (पी.एच.डी.) पूर्ण किया है | और अँग्रेजी साहित्य में भी एमए कियाहुआ है। आप वर्तमान में कालेज में बतौर व्याख्याता कार्यरत हैं। आप स्वतंत्र लेखन के ज़रिए निरंतर सक्रिय हैं।
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