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यों बदलती थातियों की मैं गवाही दे रहा हूँ।
सद्भावना घर-घर में फैले आवाजाई दे रहा हूँ॥
उठना पड़ेगा आज तुमको गिरती हुई दीवार साधो,
तोड़ डालो जुर्म का मुंह,तानाशाही दे रहा हूँ॥
लौट आएगा किसी दिन भटका हुआ मेरा मसीहा,
आज इस वाज़िब वजह से वाहवाही दे रहा हूँ॥
लिखनी पड़ेगी कोई कविता पत्थरों की जाति पर,
हाथ में छैनी-हथौड़ा और खून स्याही दे रहा हूँ॥
मिट्टी में मिलता जा रहा मिट्टी का मेरा देवता,
फिक्र करनी है तुम्हें सो रहनुमाई दे रहा हूँ॥
#गयाप्रसाद मौर्य ‘रजत’
परिचय : गयाप्रसाद मौर्य ‘रजत’ का निवास आगरा में शास्त्रीपुरम रोड सिकंदरा पर है। १९७२ में जन्म लेने के बाद प्रारम्भिक शिक्षा के पश्चात एमए(अंग्रेजी) तथा बीएड किया है।आप साहित्यिक यात्रा में १९९० से हैं। शीघ्र ही -स्पंदन अंतर्मन मन के तथा
चलो सच कह ही देता हूँ,आदि का प्रकाशन होने वाला है। मंचीय यात्रा में सैकड़ों राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय कवि सम्मेलनों में सहभागिता कर ली है। साथ ही आकाशवाणी(आगरा) और राजधानी चैनल देहलीब्रज माधुरी में काव्य गोष्ठी में सहभागिता भी की है।आपकी
सम्प्रति मथुरा स्थित महाविद्यालय में अंग्रेजी में प्रवक्ता की है।
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