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मैं केवल अहिल्या क्यों बनी?
तुम्हारे स्पर्श की आस में,
मैंने सदियां बिताई है।
पूछूं किससे ?
मेरी नियति प्रस्तर होना थी,
मेरे प्राण क्यों शुष्क माने..
जो मेरे स्वामी थे?
क्यों नहीं जाना सत्य,
क्या था वो पटाक्षेप
सिर्फ मतिभ्रम
और क्या मेरा दोष?
मैंने तो निभाई थी
निष्ठा अपनी ही,
मुझे श्रापित करने वाला,
क्या था कोई पुरुष
उद्धार करने वाला,
था देव कोई?
मैं हमेशा पुरुषत्व
को तुष्ट करने का,
माध्यम क्यों बनी
हे देव!मेरी नियति
क्यों थी यही
मैं केवल अहिल्या क्यों बनी?
#विजयलक्ष्मी जांगिड़
परिचय : विजयलक्ष्मी जांगिड़ जयपुर(राजस्थान)में रहती हैं और पेशे से हिन्दी भाषा की शिक्षिका हैं। कैनवास पर बिखरे रंग आपकी प्रकाशित पुस्तक है। राजस्थान के अनेक समाचार पत्रों में आपके आलेख प्रकाशित होते रहते हैं। गत ४ वर्ष से आपकी कहानियां भी प्रकाशित हो रही है। एक प्रकाशन की दो पुस्तकों में ४ कविताओं को सचित्र स्थान मिलना आपकी उपलब्धि है। आपकी यही अभिलाषा है कि,लेखनी से हिन्दी को और बढ़ावा मिले।
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Wed Aug 2 , 2017
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