तेरे अहसास के आगोश में,
सोना भी खूबसूरत
सपने जैसा लगता है।
रातें भी उनींदी-सी लगती है कि,
कोसों दूर भाग गई नींद जैसे…
मेरा सुकून मुझसे दगा कर गया ,
इसकी वाजिब वजह हो तुम…
हँस पड़ता हूँ कभी-कभी
तुझे याद करके यूँ ही…
और कभी खो जाता हूँ,
हँसते-हँसते तुझमें।
आँखें भी मुझसे धोखा
कर गई,तेरा ही अक्स
दिखाती है हर किसी में…
लगता है तेरा वजूद
रमा हुआ है मेरे अस्तित्व में,
कि पहचान हो जैसे…
एक-दूसरे की हम-तुम।
बनी रहे ये पहचान सदियों तलक
कि तुम भी मेरे
अहसास में खो जाओ,
कुछ ऐसा करें आओ,
कि हम तुमसे पहचाने जाएँ…
`मनु` तुम हमसे जाने जाओ,
तुम हमसे जाने जाओ…ll
#मनोज कुमार सामरिया ‘मनु'
परिचय : मनोज कुमार सामरिया `मनु` का जन्म १९८५ में लिसाड़िया( सीकर) में हुआ हैl आप जयपुर के मुरलीपुरा में रहते हैंl बीएड के साथ ही स्नातकोत्तर (हिन्दी साहित्य ) तथा `नेट`(हिन्दी साहित्य) भी किया हुआ हैl करीब सात वर्ष से हिन्दी साहित्य के शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं और मंच संचालन भी करते हैंl लगातार कविता लेखन के साथ ही सामाजिक सरोकारों से जुड़े लेख,वीर रस एंव श्रृंगार रस प्रधान रचनाओं का लेखन भी करते हैंl आपकी रचनाएं कई माध्यम में प्रकाशित होती रहती हैं।