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आग उम्मीद की मुद्दतों से लगी
जाने संदेश कब मेघ का आएगा,
वृक्ष ख्वाबों के तुम भी लगा दो सनम
वरना चौमास सूखा गुजर जाएगा।
मन मरुस्थल न बन जाए मेरा प्रिये,
मानसूनों की सौगात कर दीजिए..
मैं अमावस की ढलती हुई शाम हूँ
पूर्णिमा की तरह रात कर दीजिए,
दिल की सूखी नदी की जमी रेत पर…॥
#देवेन्द्र प्रताप सिंह ‘आग’
परिचय : युवा कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह ‘आग’ ग्राम जहानाबाद(जिला-इटावा)उत्तर प्रदेश में रहते हैं।
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