पिता का घोंसला

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sushil
मेरी खिड़की पर चिड़ियों ने एक घोंसला बना था। मैंने देखा उसमें से कुछ दिन से आवाज़ नहीं आ रही थी। मुझे लगा अब इसे हटा देना चाहिए। घोंसला ऊंचा था।मैंने टेबिल पर कुर्सी रखी और उस पर चढ़ने लगा। मेरे 75 साल के पिताजी जो आज भी शारीरिक रूप से मुझ से ज्यादा तंदुरुस्त हैं,चिल्लाए-‘रुक जा सुशील, तुझ से नहीं बनेगा,मुझे मालूम है तू हर काम थतर-मतर करता है। हट मैं निकाल ता हूँ।’
और वो उचककर उस कुर्सी पर चढ़ गए,जैसे कोई नौजवान चढ़ता है।
मैं अवाक-सा उनको देख रहा था। समझ भी रहा था कि उन्होंने मुझे क्यों चढ़ने नहीं दिया। उन्हें डर था कि,कहीं मैं उस ऊंचाई से गिर न जाऊं,क्योंकि उनकी नजर में मैं आज भी बच्चा हूँ और कोई भी काम उनके स्तर से नहीं कर पाता हूँ।
वह बहुत बड़ा घोंसला था और इस तरह से बनाया था कि,अंदर बहुत मुलायम तिनके थे और वो गद्देदार बिस्तर से भी ज्यादा मुलायम लग रहा था।
उसको देखकर पिताजी ने मेरी बेटी को आवाज़ लगाई-‘बिट्टो,देखो चूजों के मम्मी -पापा ने उनके लिए कितना आराम दायक घर बनाया है।’
बिट्टो दौड़ती हुई आई और खुशी से चीख पड़ी-‘हाँ दादाजी, ये तो बहुत मुलायम है। दादाजी वो सब कहाँ गए,चूजे और उनके मम्मी पापा!’
बिट्टो ने उत्सुकता पूर्वक प्रश्न किया।
‘बेटा चूजे बड़े हो गए,अपने पैरों पर खड़े हो गए और उड़ गए’ ,दादाजी ने गहरी सांस लेकर कहा।
‘और उनके मम्मी पापा!’
बिट्टो ने बड़ी मासूमियत से पूछा।
‘बेटा,मम्मी-पापा अपने चूजों के बगैर नहीं रह पाए होंगे,इस कारण से उन्होंने भी घर छोड़ दिया। जब तक बच्चे रहते हैं,तब तक ही घर है वरना वो तो वीरान जंगल जैसा लगता है।’
माँ-बाप कितने अरमानों से अपने बच्चों को पाल-पोस कर बड़ा करते हैं और बच्चे उन्हें छोड़ कर चले जाते हैं। पास बैठ कर दो बात भी नहीं करते अच्छे से।’
दादा जी कनखियों से मुझे देखते जा रहे थे और अपनी पोती को सीख दे रहे थे।
मुझे मालूम है कि उनकी इस सीख में मेरे लिए भी एक संदेश था।

                                                                                         #सुशील शर्मा

परिचय : सुशील कुमार शर्मा की संप्रति शासकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय(गाडरवारा,मध्यप्रदेश)में वरिष्ठ अध्यापक (अंग्रेजी) की है।जिला नरसिंहपुर के गाडरवारा में बसे हुए श्री शर्मा ने एम.टेक.और एम.ए. की पढ़ाई की है। साहित्य से आपका इतना नाता है कि,५ पुस्तकें प्रकाशित(गीत विप्लव,विज्ञान के आलेख,दरकती संवेदनाएं,सामाजिक सरोकार और कोरे पन्ने होने वाली हैं। आपकी साहित्यिक यात्रा के तहत देश-विदेश की विभिन्न पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों में करीब ८०० रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। इंटरनेशनल रिसर्च जनरल में भी रचनाओं का प्रकाशन हुआ है।
पुरस्कार व सम्मान के रुप में विपिन जोशी राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान ‘द्रोणाचार्य सम्मान-२०१२’, सद्भावना सम्मान २००७,रचना रजत प्रतिभा

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।