मीलों कोई छांव नहीं, बागों वाला गांव नहीं, पोखर,नहर, कुएं,
रीते-रीते देखे हैं
हरे भरे पेड़ काट,
धरती को लिया बाँट, खेतो में ट्यूबवेल
खाली लगे देखे हैं।
पर्वतों को काट-काट, बना दिए रेल मार्ग,
धरती डगमगाती,
भूकंप आए देखे हैं।
वृक्ष को लगाओ आज, धरती श्रृंगार करे,
फूल-फल अंग सजे,
सपने में देखे हैं।।
#प्रमिला पान्डेय
परिचय : उत्तरप्रदेश के कानपुर से प्रमिला पान्डेय का नाता है। आप १९६१ में जन्मी और परास्नातक (हिन्दी)की शिक्षा ली है। लेखन में गीत,ग़ज़ल, छंद,मुक्तक और दोहे रचती हैं। हिन्दी गद्य में साहित्यिक उपन्यास(छाॅहो चाहति छाॅह)आ चुका है। आपने साहित्य गौरव सम्मान,सशक्त लेखनी सम्मान आदि पाए हैं।