जीवन चक्र

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विधाता ने श्रृष्टि बनाई
और उसके नियम बनाये।
जिन्हें पृथ्वीवासियों को
मानना सबका कर्तव्य है।
अब हम माने या न माने
ये सब पर निर्भर करता है।
क्योंकि विधाता ने तो
सब कुछ आपको दिया।।

भावनाओं से ही भाव बनतें है।
भावों से ही भावनाएं चलती हैं।
जीवन चक्र यूँ ही चलता रहता है।
बस दिलमें आस्थायें बनाये रखो।।

जीवन बहुत अनमोल है।
हर पल को जीना जरूरी है।
मूल सिध्दांत ये कहता है।
खुद जीओ औरों को जीने दो।।

स्नेह प्यार से मिलाकर रहो।
ऐसी वैसी बाते मत बोलो।
जिससे पीड़ा हो दोनों को।
मधुर वाणी से मुंह खोलो।।

हमने जितना समझ है
बस उतना ही लिखा।
बाकी पाठकों पर छोड़ दिया।
अब इसे सराहे या ठुकरायें।
इस कविता का भविष्य
आपके हाथ में हैं।
हमें अपनी प्रतिक्रिया
आप जरूर ही दें।
ताकि आगे भी मैं
और लिखा सकू।।

ये ही सुख शांति का
एक मात्र महामंत्र है।
जो भी जीवन में
इसे अपनाता है।
उसका पूरी जिंदगी
महक जाती है।
इसलिए संजय ये संदेश
आपको दे रहा है।।

जय जिनेन्द्र देव
संजय जैन, मुम्बई

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