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प्रेम, प्रेम तो सब रटें,
प्रेम न करे कोय;
एक बार जो प्रेम करे,
तो प्रेम-प्रेम ही होय।
जो बांटोगे वही मिलेगा,
ये है जग की रीत;
क्यों न प्रेम को सब बांटें,
बढ़ जावेगी प्रीत।
प्रेम अगर निश्छल करो,
निश्छल प्रेम ही पाओ;
छल वाले प्रेम में तो,
खुद भी छल-छल जाओ॥
#अरविंद ताम्रकार ‘सपना’
परिचय : श्रीमति अरविंद ताम्रकार ‘सपना’ की शिक्षा एमए(हिन्दी साहित्य)है।आपकी रुचि लेखन और छोटे बच्चों को पढ़ाने के साथ ही जरुरतमंद की सामर्थ्यानुसार मदद करने में है।आप अपने रचित भजन खुद गाकर व लेखन द्वारा अपने मनोभावों को चित्रित करती हैं। सिवनी(म.प्र.)के समता नगर में आप रहती हैं।
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Fri Oct 6 , 2017
जिसके नैनों का नीर ही सूख चुका, ऐसे अन्धों को दर्पण दिखाने से क्या। जिसकी फ़ितरत में ही हो फ़रेब भरा, उसको प्यार से गले लगाने से क्या। जिसने घोषित किया खुद को ही है ख़ुदा, उसको मस्ज़िद का रस्ता बताने से क्या। जिसने आशा का दामन ही छोड़ दिया, […]
बहुत ही सुंदर अभिव्यति