हम तो ईश्वर
को मानते हैं,
वही तो सब कुछ है..
हृदय में बसते हैं,
दिल में रहते हैं..
दिल में ही बसते हैं,
दिल की ही सुनते हैं..
दिल में ही कहते हैं,
करना है उनको जो,
एहसास कराते हैं।
कोई मेरा बुरा करे,
मुझको बताते हैं..
बुरा करने बाले को,
वही सजा देते हैं..
कभी-कभार नहीं,
रोज ऐसा होता है..
हमेशा ईश्वर मेरे,
साथ होते हैं..
ईश्वर की इच्छा बिना,
कुछ नहीं कर पाता हूँ।
मुँह में निवाला भी,
वही तो खिलाते हैं.
उनके बिना संसार में,
पत्ता नहीं हिल सकता..
कोई माने न माने,
हरदम मैं तो मानता हूँ..
ईश्वर इच्छा बिना कुछ,
कर नही पाता हूँ..
बस सुबह-सुबह हमेशा,
ईश्वर नाम लेता हूँ।
क्योंकि,ईश्वर पर हभेशा,
विश्वास रखता हूँ..
विश्वास करता हूँ,
वही करता-कराता है,
उसी को मानता हूँ..
विश्वास दिलाता है,
जीवन में हर राह,
वही तो बताता है..
मर्जी बिना उसकी,
एक पत्ता नहीं,
हिलता है..
रोम-रोम में मेरे,
वही तो बसता है..
वही तो रहता है।।
#अनन्तराम चौबे
परिचय : अनन्तराम चौबे मध्यप्रदेश के जबलपुर में रहते हैं। इस कविता को इन्होंने अपनी माँ के दुनिया से जाने के दो दिन पहले लिखा था।लेखन के क्षेत्र में आपका नाम सक्रिय और पहचान का मोहताज नहीं है। इनकी रचनाएँ समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं।साथ ही मंचों से भी कविताएँ पढ़ते हैं।श्री चौबे का साहित्य सफरनामा देखें तो,1952 में जन्मे हैं।बड़ी देवरी कला(सागर, म. प्र.) से रेलवे सुरक्षा बल (जबलपुर) और यहाँ से फरवरी 2012 मे आपने लेखन क्षेत्र में प्रवेश किया है।लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य, कविता, कहानी, उपन्यास के साथ ही बुन्देली कविता-गीत भी लिखे हैं। दैनिक अखबारों-पत्रिकाओं में भी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। काव्य संग्रह ‘मौसम के रंग’ प्रकाशित हो चुका है तो,दो काव्य संग्रह शीघ्र ही प्रकाशित होंगे। जबलपुर विश्वविद्यालय ने भीआपको सम्मानित किया है।
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अभिव्यक्ति भाव जगाती है
विधा गौड़ हो जाती है
कह न पाए जिसे लबों से तब
कलम वो सब लिख जाती है
…… विवेक …