
कर कर के मैं थक गया
जीवन भर काम।
सबको व्यवस्थित करके
किया अपना काम।
जब आया थोड़ा सा मौका
मिल ने को आराम।
तभी थमा दिया मुझे
एक प्यारा सा पैगाम।
जाकर तुम अब देखो
पुन: एक नया काम।
वाह री मेरी किस्मत
और वाह रे मेरा नसीब।
कभी नहीं मिल सकता
क्या अब मुझे आराम।
फिरसे तुम शुरू करो
एक नया काम ।
जीवन तुम्हारा निकलेगा
कर कर के ही काम।
नहीं लिखा है भाग्य में
तुम्हे कही भी आराम।
करते रहो संघर्ष
तुम जीवन पर्यन्त।
तेरा जीवन बीतेगा
कर कर के काम।
जिस दिन तू रुकेगा
अंत तेरा हो जायेगा।
फिर याद करेंगे तुझे
वो तेरे साथ वाले लोग।
जहाँ जहाँ तुम ने
किया था काम।
पर अब में क्या करू
जब रूठ गए अपने।
और हो गया शिकार
अपने ही लोगो का ।
अब किसको दे दोष
जब किस्मत गई रुठ।
फिर भी कदम नहीं
पीछे हम हटाएंगे।
और अंत समय तक
काम अब करते जाएंगे।
और कर्मी के बल पर आगे कदम बढ़ाएंगे।।
जय जिनेन्द्र देव
संजय जैन (मुंबई)