सम्पूर्ण प्रेम

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sandeep
सुनो प्रिये!
मैंने
अपने पूरे होश में
तुम्हारे नाम
वसीयत में लिख दिया,
सम्पूर्ण प्रेम..
सोचता हूँ
तुम्हारा संवेदनशून्य
मलिन-भावनाविहीन
ह्रदय
नहीं महसूस पाएगा
उस वसीयत की अहमियत
और
तुम्हारे जीवन की
उलझी शाम में
खुरदरे हुए हाथों के स्पर्श से
मेरी देह
नहीं ले पाएगी सुख स्पंदन का ही,
बस तब तुम
होंठ बिचका कहोगी
तुम्हें प्रेम है मेरी देह से,
तब तुम घृणा से
फिरा अपना मुख
सो जाने का अभिनय करोगी।
फिर लेटी रहोगी
ऊष्मा काल तक,
सजाते हुए सपने
प्रेम के अहसास के..
और भोर होते
पुनः झोंक डालोगी
अपने दोनों बैडोल हाथ
दिनभर के जंजाल में,
इसीलिए
मैंने,
अपने पूरे होश में
तुम्हारे नाम
वसीयत में लिख दिया
सम्पूर्ण प्रेम।।

                                                                        #संदीप तोमर

परिचय : 1975 में दुनिया में आने वाले संदीप तोमर गंगधाडी जिला मुज़फ्फरनगर(उत्तर प्रदेश ) से वास्ता रखते हैं एमएससी(गणित), एमए (समाजशास्त्र व भूगोल) और एमफिल (शिक्षाशास्त्र) भी कर चुके श्री तोमर कविता,कहानी,लघुकथा तथा आलोचना की विधा में अधिक लिखते हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में ‘सच के आसपास (कविता संग्रह)’,’टुकड़ा-टुकड़ा परछाई(कहानी संग्रह)’उल्लेखनीय है। साथ ही शिक्षा और समाज(लेखों का संकलन शोध प्रबंध),कामरेड संजय (लघु कथा),’महक अभी बाकी है’ (सम्पादित काव्य संग्रह), ‘प्रारंभ’ (साझा काव्य संग्रह),’मुक्ति (साझा काव्य संग्रह)’ भी आपकी लेखनी की पहचान है। वर्तमान में आप नई दिल्ली के उत्तम नगर में रहते हैं।

matruadmin

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