नीरज त्यागीग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश )
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आज बड़े मन से एक दीप जलाया है,
प्रज्वलित हो जाये अब फिर से जीवन,
हाँ मैंने फिर उम्मीदों का दीप जलाया है।
दुखो की छाया को दूर करुँगा जीवन से,
घनघोर अंधेरा जो जीवन मे उसे हटाने को
हाँ मैंने फिर उम्मीदों का दीप जलाया है।
बादल गरजे,बढ़ता जाता है जो अँधियारा
उस अँधियारे को जीवन से मिटाने के लिए
हाँ मैंने फिर उम्मीदों का दीप जलाया है।
गहरे बढ़ते अंधकार से इधर उधर जो मैं
टकराता,उस अँधियारे को मिटाने के लिए
हाँ मैंने फिर उम्मीदों का दीप जलाया है।
आज बड़े मन से एक दीप जलाया है,
प्रज्वलित हो जाये अब फिर से जीवन,
हाँ मैंने फिर उम्मीदों का दीप जलाया है।
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