मुर्दा नदी में जान डालने का जतन…

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aadil

मशहूर अर्थशास्त्री जान मलार्ड कीन्स ने कहा था कि,अगर सरकार के पास काम न हो,तो वो सड़क पर गड्ढे खुदवाए और उन्हें भरवाकर लोगों को रोजगार दे। इस सिद्धांत को साम्यवादी देशों ने खूब अपनाया और अब अब अपनी मुंसीपाल्टी ने भी बहुत अच्छे से समझ लिया है। वह इसका इस्तेमाल ठेकेदारों को रोजगार देने में कर रही है,इसीलिए खान नदी में जान फूंकने का ढोंग किया जाता है। जिस तरह इंसान जीते-मरते हैं, उसी तरह पेड़-पौधे,नदी,तालाब, बोली-भाषा भी मरती है। जहां कभी टेथिस सागर था,आज वहां हिमालय खड़ा है। आने वाले वक्त में हो सकता है कि,वहां रेत के टीले हों,हिमालय के किस्से किताबों में ही मिलें। कभी इब्रानी भाषा में दुनिया के बड़े धर्म फले-फूले,लेकिन अब वह दुनिया से रवाना हो चुकी है तो संस्कृत सांसें गिन रही है,और सरस्वती नदी रेत में खो गई है। इसी तरह खान नदी अब नाला बन चुकी है। जिस तरह राजस्थान की रेत से सरस्वती नदी ढूंढने की कोशिश फ़िज़ूल है,उसी तरह प्रसिद्ध राजवाड़ा के नाले से सरस्वती और खान नदी निकालना भी भूसे में सुई ढूंढना है,लेकिन मुंसीपाल्टी को तो ठेकेदारों को रोजगार देना है,और हां शहर को स्मार्ट भी बनाना है, इसीलिए खान नदी के किनारे फिर बगीचा उगाने की कोशिश हो रही है। पहले भी ऐसा हो चुका है कि,मोटर बोट चलाएंगे,वह तो नहीं चली,लेकिन चलाने वाले मोटर चलाते दिख जाते हैं। चलो मान लेते हैं कि,निगम के ठेकेदार मामूली फायदा या जेब से पैसा लगाकर नाले किनारे को ‘स्मार्ट’ बना देंगे,तो क्या गारंटी है कि लोग वहां सैर करने आएंगे और कभी आ भी गए तो क्या गारंटी कि कचरा नहीं डालेंगे।
अरे,जब लोगों ने गंगा को कचरा डालकर मेला कर दिया तो, इस नाले की क्या बिसात! लोगों ने तो इसे अपनी आंखों से नाले से नदी बनते देखा होगा,गंगा के तो स्वर्ग से उतरने के किस्से सुने हैं,फिर भी नहीं माने.. तो खान के तो उन्हें माई-बाप का भी पता नहीं, इसे तो यकीनन वह नदी नहीं मानेंगे और कचरा डालेंगे। गंदा पानी इसमें छोड़ेंगे,लेकिन मुंसीपाल्टी को इससे क्या, वह तो कल्याणकारी राज्य की अवधारणा पर काम कर रही है। जब तक ठेकेदारों का कल्याण नहीं होगा तो सबका कल्याण कैसे होगा ? इसलिए नदी में जान डालकर जीवनदाई मुंसीपाल्टी का तमगा भी लेना है और ‘स्मार्ट’ भी बनना है इसीलिए मुर्दे में जान फूंकने के लिए पैसे फूंकने की तैयारी है।

#आदिल सईद

परिचय : आदिल सईद पत्रकारिता में एक दशक से लगातार सक्रिय हैं और सामाजिक मुद्दों पर इन्दौर से प्रकाशित साँध्य दैनिक पत्र में अच्छी कलम चलाते हैं। एमए,एलएलबी सहित बीजे और एमजे तक शिक्षित आदिल सईद कला समीक्षक के तौर पर जाने जाते हैं। आप मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इन्दौर में रहते हैं।

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